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१९२ खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा० २६८पर्वतोऽयमग्निमान् धूमवत्वात् महानसवत्, इत्यादि अनुमानं ज्ञानम्, तदपि नयम् । परोक्षज्ञानं बहुविधमनेकप्रकार स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्वानुमानागमभेदं जानीहि ॥ २६७ ॥ अथ नयभेदान् निर्दिशति
सो संगहेण एक्को दु-विहो वि य दव-पज्जएहिंतो।
तेसिं चे विसेसादो णइगम-पहुदी हवे गाणं ॥ २६८॥ [छाया-स संग्रहेन एकः द्विविधः अपि च द्रव्यपर्ययाभ्याम् । तयोः च विशेषात् नैगमप्रभृति भवेत् ज्ञानम् ॥ स नयः एकम् एकप्रकारं संग्रहेण संग्रहनयेन द्रव्यपर्याययोर्भेदमकृत्वा सामान्येन नयः एको भवति । अपि पुनः, स नयः द्विविधः । काभ्याम् । द्रव्यपर्यायाभ्याम् एको द्रव्यार्थिकनयः द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः द्रव्यग्रहणप्रयोजनत्वाच, द्वितीयः पर्यायार्थिकः पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिको नयः, पर्यायग्रहणप्रयोजनत्वाच्च । तेसिं च तयोः द्रव्यपर्याययोश्च द्वयोर्विशेषात् विशेषलक्षणात् ज्ञानं नयलक्षणप्रमाणं ज्ञानकदेशं वा नैगमप्रभृतिकं भवेत् । नैगमसंग्रहव्यवहारऋजुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवंभूतप्रमुखज्ञानं नयरूपो बोधः स्यात् । नैगमसंग्रहव्यवहारनयास्त्रयो द्रव्यार्थिकाः। ऋजुसूत्रशब्दसमभिरूढेवभूता नयाश्चत्वारः पर्यायार्थिकाश्च इति ॥ २६८ ॥
जो साहदि सामण्णं अविणा-भूदं विसेस-रूवेहिं ।
णाणा-जुत्ति-बलादो दवत्थो सो गओ होदि ॥ २६९ ॥ [छाया-यः कथयति सामान्यम् अविनाभूतं विशेषरूपैः । नानायुक्तिबलात् द्रव्यार्थः स नयः भवति ॥] यः नयः साधयति विषयीकरोति गृह्णातीत्यर्थः । किं तत् । सामान्यं निर्विशेषं सत्त्वं द्रव्यत्वात्मत्वादिरूपम् । तत् कीदृशं सामान्यम् । विशेषरूपैः अविनाभूत जीवास्तित्वपुद्गलास्तित्वधर्मास्तित्वादिस्वभावः अविनाभूतम् एकैकमन्तरेण न स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ये अनेक भेद बतलाये हैं । यहाँ ग्रन्थकारने अनुमान ज्ञानको जो नय बतलाया है वह एक नईसी बात प्रतीत होती है । क्योंकि अकलंक देव वगैरहने अनुमान ज्ञानको परोक्ष प्रमाणके भेदोंमें ही गिनाया है । और अन्य किसी भी आचार्यने उसे नय नहीं बतलाया। किन्तु जब नय हेतुवाद है तो अनुमान भी नयरूप ही बैठता है । इसके लिये अष्टसहस्रीकी कारिका १०६ देखना चाहिये ॥ २६७ ॥ आगे नयके भेद कहते हैं । अर्थ- संग्रह अर्थात् सामान्यसे नय एक है । द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकके भेदसे दो प्रकारका है । उन्हीं दोनोंके भेद नैगम आदि ज्ञान हैं ।। भावार्थ-द्रव्य और पर्यायका भेद न करके सामान्यसे नय एक है । और द्रव्य तथा पर्यायके भेदसे नयके भी दो भेद हैं-एक द्रव्यार्थिक नय, एक पर्यायार्थिक नय । जिस नयका विषय केवल द्रव्य ही है वह द्रव्यार्थिक नय है । और जो नय केवल पर्यायको ही ग्रहण करता है वह पर्यायार्थिक नय है । इन दोनों नयोंके नैगम आदि अनेक भेद हैं । नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय ये तीन द्रव्यार्थिक नय हैं । और ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवंभूत ये चार पर्यायार्थिक नय हैं ॥ २६८ ॥ आगे द्रव्यार्थिक नयका खरूप कहते हैं । अर्थ-जो नय वस्तुके विशेष रूपोंसे अविनाभूत सामान्यरूपको नाना युक्तियोंके बलसे साधता है वह द्रव्यार्थिक नय है ॥ भावार्थ-जो नय वस्तुके सामान्य रूपको युक्तिपूर्वक ग्रहण करता है वह द्रव्यार्थिक नय है । किन्तु वह सामान्य विशेष धर्मोसे निरपेक्ष नहीं होना चाहिये । बल्कि विशेषोंका अविनाभावी, उनके विना न रहनेवाला और उनके सद्भावमें ही रहनेवाला होना चाहिये । अन्यथा वह नय सुनय न होकर दुर्नय होजायेगा । आलाप
१ स इको (१)। २ स वि । ३ स णयगम ।
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