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१३८ खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा० २०५वर्तते। जीवद्रव्यस्य तु चेतनत्वं सर्ववस्तुप्रकाशकत्वम् उपयोगलक्षणत्वं च वर्तते । अत एव जीवद्रव्यमुत्तमं जानीहि । तत्त्वानां सर्वतत्त्वानां मध्ये परमतत्त्वं जीवं जानीहि । ॥ २०४ ॥ जीवस्यैवोत्तमद्रव्यत्वपरमत्वं कथमिति चेदाह
अंतर-तच्चं जीवो बाहिर-तच्चं हवंति सेसाणि ।
णाण-विहीणं दव्वं हियाहियं णेयं जाणेदि ॥ २०५॥' छाया- अन्तस्तत्त्वं जीवः बाह्यतत्त्वं भवन्ति शेषाणि । ज्ञानविहीनं द्रव्यं हिताहितं नैव जानाति ॥] जीव आत्मा अंतरतचं अन्तस्तत्त्वम् आभ्यन्तरतत्त्वम् । शेषाणि तत्त्वानि अजीवास्रवबन्धादीनि पुत्रमित्रकलनशरीरगृहादिचेतनाचेतनादीनि च बाहिरतच्च बाह्यतत्त्वं भवति । जीव एव अन्तस्तत्त्वम् । कुतः। यतः शेषद्रव्याणामचेतनत्वम् । ज्ञानेन विहीनं द्रव्यं पुद्गलधर्माधर्माकाशकालरूपं द्रव्यं हिताहितं हेयोपादेयं पुण्यं पापं सुखदुःखादिक नैव जानाति । शेषाणां तु अज्ञखभावात् , जीवस्य ज्ञखभावात् सर्वोत्तमत्त्वम् । परमात्मप्रकाशे प्रोक्तं च । “जं णियदव्वहं भिण्णु जडु तं परदन्तु वियाणि। पोग्गल धम्माधम्म णहु कालु वि पंचमु जाणि ॥” इति ॥२०५॥ जीवणिरूवणं जीवद्रव्यस्य निरूपणं समाप्तम् ॥ अथ पुद्गलद्रव्यखरूपं गाथाषट्रेन विवृणोति
सव्वो लोयायासो पुग्गल-दव्वेहिँ सव्वदो भरिदों।
सुहुमेहिँ बायरेहि य णाणा-विह-सत्ति-जुत्तेहिं ॥२०६ ॥ [छाया-सर्वः लोकाकाशः पुद्गलद्रव्यैः सर्वतः मृतः। सूक्ष्मैः बादरैः च नानाविधशक्तियुक्तैः ॥] सर्वः जगच्छ्रेणिधनप्रमाणः लोकाकाशः पुद्गलद्रव्यैः सर्वतः भृतः । कीदृक्षैः । पुद्गलद्रव्यैः सूक्ष्मैः बादरैः स्थूलैः । पुनः कीदृक्षैः । अचेतन हैं किन्तु जीवद्रव्य चेतन है, वह वस्तुओंका प्रकाशक अर्थात् जानने देखनेवाला है; क्योंकि उसका लक्षण उपयोग है । इसीसे जीवद्रव्य ही सर्वोत्तम है । तथा जीव ही सब तत्त्वोंमें परमतत्त्व है ॥२०४ ॥ आगे कहते हैं कि जीव ही उत्तम और परमतत्त्व क्यों हैं ! अर्थ-जीव ही अन्तस्तत्त्व है, बाकी सब बाह्य तत्त्व हैं । वे बाह्यतत्त्व ज्ञानसे रहित हैं अतः वे हित अहितको नहीं जानते॥भावार्थआत्मा अभ्यन्तर तत्त्व है बाकीके अजीव, आस्रव, बन्ध वगैरह पुत्र, मित्र, स्त्री, शरीर, मकान आदि चेतन और अचेतन द्रव्य बाह्य तत्त्व हैं । एक जीव ही ज्ञानवान् है बाकीके सब द्रव्य अचेतन होनेके कारण ज्ञानसे शून्य हैं । पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और कालद्रव्य हित अहित, हेय, उपादेय, पुण्य पाप, सुख दुःख वगैरहको नहीं जानते। अतः शेष सब द्रव्योंके अज्ञस्वभाव होनेसे और जीवके ज्ञानखभाव होनेसे जीव ही उत्तम है । परमात्मप्रकाशमें कहा भी है-'जो आत्म पदार्थसे जुदा जड पदार्थ है, उसे परद्रव्य जानो । और पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और पाँचवाँ कालद्रव्य ये सब परद्रव्य जानो।' जीवद्रव्यका निरूपण समाप्त हुआ ॥ २०५ ॥ अब छ: गाथाओंके द्वारा पुद्गल द्रव्यका खरूप कहते हैं । अर्थ-अनेक प्रकारकी शक्तिसे सहित सूक्ष्म और बादर पुद्गल द्रव्योंसे समस्त लोकाकाश पूरी तरह भरा हुआ है। भावार्थ-यह लोकाकाश जगतश्रेणिके घनरूप अर्थात् ३४३ राजु प्रमाण है । सो यह पूराका पूरा लोकाकाश शरीर आदि अनेक कार्य करनेकी शक्तिसे युक्त तेईस प्रकारकी वर्गणा रूप पुद्गलद्रव्योंसे, जो सूक्ष्म भी हैं और स्थूल भी हैं, भरा हुआ है । उन पुद्गलोंके सूक्ष्म और बादर भेद इस प्रकार कहे हैं-"जिनवर देवने पुद्गल द्रव्यके छः भेद बतलाये हैं-पृथ्वी, जल, छाया, चक्षुके सिवा शेष चार इन्द्रियोंका विषय, कर्म और परमाणु । इनमेंसे पृथ्वीरूप पुद्गल द्रव्य बादर बादर है; क्योंकि जो छेदा भेदा जा सके तथा एक जगहसे दूसरी जगह ले जाया जा सके
१ल स ग हेयाहेयं । २ बणेव । ३ ब जीवणिरूवणं । सन्बो इत्यादि । ४ ब भरिओ।
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