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संस्कृत टीकासहित कार्ति के या नु प्रेक्षा की विषय सूची
पृष्ठ मंगलाचरण
___ १६ अशुचित्वानुप्रेक्षा ४१-४३ बारह अनुप्रेक्षाओंके नाम
शरीरकी अशुचिताका कथन १ अनित्यानुप्रेक्षा ३-११ ७ आस्रवानुप्रेक्षा
४३-४६ पर्याय दृष्टि से प्रत्येक वस्तु अनित्य है। ३-४ । योगही आस्रव है । संसारके सब विषय क्षणभंगुर है। ५ शुभानवका कारण मन्द कषाय बन्धुबान्धवोंका सम्बन्ध पथिकजनोंकी अशुभास्रवका कारण तीव्र कषाय __ तरह क्षणिक है।
मन्दकषायके चिन्ह लक्ष्मीकी चंचलताका चित्रण ६-९- तीव्रकषायके चिन्ह धर्मकार्यों में लक्ष्मीका उपयोग करने- ८ संवरानुप्रेक्षा ___ वालोंकी ही लक्ष्मी सार्थक है। १० संवरके नाम २ अशरणानुप्रेक्षा १२-१५ । संवरके हेतु संसारमें कोई भी शरण नहीं है। १२६ गुप्ति, समिति, धर्म और अनुप्रेक्षाका जो भूतप्रेतोंको रक्षक मानता है वह
खरूप ___ अज्ञानी है।
परीषहजय सम्यग्दर्शनादि ही जीवके शरण हैं। १५ उत्कृष्ट चारित्रका स्वरूप ३ संसारानुप्रेक्षा १६-३७ ९ निर्जरानुप्रेक्षा
४९-५४ संसारका स्वरूप
निर्जराका कारण नरकगतिके दुःखोंका वर्णन १६-१९ निर्जराका स्वरूप तिर्यश्चगतिके , ,
१९-२० निर्जराके भेद मनुष्यगतिके , ,
२१-२६ उत्तरोत्तर असंख्यात गुणी निर्जरावाले देवगतिके , , २६-२७ ___सम्यग्दृष्टी आदि दस स्थान एकभवमें अट्ठारहनाते २९-३० अधिक निर्जराके कारण ५२-५४ पांच परावर्तनोंका स्वरूप ३१-३७ १० लोकानुप्रेक्षा . ५५-२०४ ४ एकत्वानुप्रेक्षा ३८-३९ लोकाकाशका स्वरूप जीवके अकेलेपनका कथन
लोकाकाशका पूर्वपश्चिम विस्तार ५७ ५ अन्यत्वानुप्रेक्षा
, दक्षिण-उत्तर विस्तार ५८ जीवसे शरीरादि भिन्न हैं। ४० । अधोलोक मध्यलोक और ऊर्ध्वलोकका विभाग,
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