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________________ पृष्ठ ४३ ४४ ४६-४९ संस्कृत टीकासहित कार्ति के या नु प्रेक्षा की विषय सूची पृष्ठ मंगलाचरण ___ १६ अशुचित्वानुप्रेक्षा ४१-४३ बारह अनुप्रेक्षाओंके नाम शरीरकी अशुचिताका कथन १ अनित्यानुप्रेक्षा ३-११ ७ आस्रवानुप्रेक्षा ४३-४६ पर्याय दृष्टि से प्रत्येक वस्तु अनित्य है। ३-४ । योगही आस्रव है । संसारके सब विषय क्षणभंगुर है। ५ शुभानवका कारण मन्द कषाय बन्धुबान्धवोंका सम्बन्ध पथिकजनोंकी अशुभास्रवका कारण तीव्र कषाय __ तरह क्षणिक है। मन्दकषायके चिन्ह लक्ष्मीकी चंचलताका चित्रण ६-९- तीव्रकषायके चिन्ह धर्मकार्यों में लक्ष्मीका उपयोग करने- ८ संवरानुप्रेक्षा ___ वालोंकी ही लक्ष्मी सार्थक है। १० संवरके नाम २ अशरणानुप्रेक्षा १२-१५ । संवरके हेतु संसारमें कोई भी शरण नहीं है। १२६ गुप्ति, समिति, धर्म और अनुप्रेक्षाका जो भूतप्रेतोंको रक्षक मानता है वह खरूप ___ अज्ञानी है। परीषहजय सम्यग्दर्शनादि ही जीवके शरण हैं। १५ उत्कृष्ट चारित्रका स्वरूप ३ संसारानुप्रेक्षा १६-३७ ९ निर्जरानुप्रेक्षा ४९-५४ संसारका स्वरूप निर्जराका कारण नरकगतिके दुःखोंका वर्णन १६-१९ निर्जराका स्वरूप तिर्यश्चगतिके , , १९-२० निर्जराके भेद मनुष्यगतिके , , २१-२६ उत्तरोत्तर असंख्यात गुणी निर्जरावाले देवगतिके , , २६-२७ ___सम्यग्दृष्टी आदि दस स्थान एकभवमें अट्ठारहनाते २९-३० अधिक निर्जराके कारण ५२-५४ पांच परावर्तनोंका स्वरूप ३१-३७ १० लोकानुप्रेक्षा . ५५-२०४ ४ एकत्वानुप्रेक्षा ३८-३९ लोकाकाशका स्वरूप जीवके अकेलेपनका कथन लोकाकाशका पूर्वपश्चिम विस्तार ५७ ५ अन्यत्वानुप्रेक्षा , दक्षिण-उत्तर विस्तार ५८ जीवसे शरीरादि भिन्न हैं। ४० । अधोलोक मध्यलोक और ऊर्ध्वलोकका विभाग, ० ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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