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अनुवादक कीओरसे...
मेरे लिए यह एक बड़े सौभाग्य की बात है, कि जैन जगत् के ख्याति प्राप्त राष्ट्रपति पुरुस्कार से पुरस्कृत स्व. पं. पन्नालाल साहित्याचार्य जी से लगभग १४ वर्ष तक लगातार अध्ययन करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ और उन्हीं के सानिध्य में रहकर एम.ए. दर्शनाचार्य आदि की परीक्षाएं उत्तीर्ण की । मेरी जिज्ञासा कोर्स के अतिरिक्त अन्य नवीन रचनाओं को पढ़ने की रहती है। कही भी प्रवचन आदि करने जाता हूँ तो वहां के शास्त्र भण्डार का अवश्य ही अवलोकन करता हूँ। यदि कोई अपठित रचना प्राप्त होती है तो उसको अवश्य पढ़ता हूँ। इसी जिज्ञासा प्रकृति के कारण में पं. जी से अन्य खाली समय में ऐसी ही अपठित रचनाओं का अध्ययन करता था। इसी के अन्तर्गत ज्ञानलोचन स्तोत्र एवं बाहुबलि स्तोत्र का भी अध्ययन किया था। उसी दौरान अर्थ का स्मरण रखने के लिये अनुवाद भी करते गये यह कार्य हमारे पास बहुत लम्बे समय से अव्यवस्थित रूप से रखा हुआ था। ब्र. भाई विनोद जी एवं अनिल जी जो कि निरन्तर अप्रकाशित प्राचीन पाण्डुलिपियों को प्रकाश में लाने का प्रयत्न करते रहते हैं। ब्र. विनोद जी ने मेरी उस अव्यवस्थित रफ कार्य को लेकर स्वयं संशोधित कर तथा कम्प्यूटर संबंधित समस्त कार्यों को कर इसको प्रकाश में लाने का प्रयास किया है । हम उन्हें किन शब्दों द्वारा आभार व्यक्त करें। अनुवाद में मूल श्लोकों के भाव को स्पष्ट करने का पूर्ण प्रयास किया है फिर भी गलतियां रहना संभव है। भूल के लिए विद्वत्जन हमें क्षमा करेंगे और रचना को पढ़कर पुण्यार्जन करेंगे। ब्र. सुरेन्द्र जी दर्शनाचार्य के सहयोग से इस ग्रंथ का प्रकाशन किया जा रहा है - आप धन्यवादाह हैं।
ब्र.राजेन्द्र जैन
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