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________________ जिस कर्म के उदयसे शरीर संबंधी पुद्गलसुगन्धित होते हैं, वह सुरभिगंध नामकर्म है। (ध पु.6/75) दुरभिगंध जस्स कम्मस्स उदएणसरीरपोग्गला दुग्गंधा होंति तं दुरहिगंधं णाम। जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गल दुर्गन्धित होते हैं। वह दुरभिगंध नामकर्म है। (ध प. 6/75) रस नामकर्म जस्स कम्मस्सुदएणसरीरे रसणिप्फत्ती होदितं रसणाम। जिस कर्म के उदय से शरीर में रस की निष्पत्ति होती है, वह रस नामकर्म है। - (ध 13/364) जस्स कम्मक्खंघस्स उदएणजीवसरीरे जादिपडिणियदो त्तितादिरसो होज्ज तस्स कम्मक्खंघस्सरससण्णा। जिस कर्म स्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति के प्रतिनियत तिक्त आदि रस उत्पन्न हो, उस कर्म स्कंध की 'रस' यह संज्ञा है। (ध 6/55) तत्तत्स्वस्वशरीराणां यत्स्वस्वरसं करोति तद्रसनाम। अपने-अपने शरीरका जो अपना-अपना रस करता है, उसे रस नाम कर्म कहते हैं। (क.प्र./29) यन्निमित्तोरसविकल्पस्तद्रसनाम। जिसके उदय से रस में भेद होता है वह रस नामकर्म है। (स.सि. 8/11) रस्यते रसनमानं वारसः। जो स्वाद रूप होता है या स्वाद मात्र को रस कहते हैं। (स.सि. 5/23) विशेष - इसकर्म के अभाव में जीव के शरीरमें जाति-प्रतिनियत रस नहीं होगा। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, नीम, आम और नीबू आदिमें नियत रस पाया जाता है। (ध.6/55) रस नामकर्म के भेद जंतंरसणामकर्म तं पंचविहं, तित्तणामं कडुवणाम, कसायणामं, अंबणार्म महुरणामं चेदि। जो रसनामकर्म है वह पाँच प्रकार का है । तिक्त नामकर्म, कडुकनामकर्म (77) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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