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________________ नामकर्म, अर्धनाराचशरीर संहनननामकर्म, कीलक शरीर सहनन नामकर्म और असंप्राप्तासृपाटिका शरीर सहनननामकर्म । (ध. 6/73) वज्रऋषभवज्रनाराच शरीर सहनन नामकर्म सहननमस्थिसंचयः, ऋषभो वेष्टनम् वज्रवदभेद्यत्वाद्वऋषभः वज्रवन्नाराचःवज्रनाराचः, तौद्वावपियस्मिन् वज्रशरीरसंहनने तद्वऋषभ वज्रनाराचशरीर संहननम् । जस्स कम्मस्स उदएण वजहड्डाई वज्जवेढेण वेट्ठियाई वज्जणाराएण खीलियाई च होति तं वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणमिदि। हड्डियों के सचंय को सहनंन कहते हैं। वेष्टन को ऋषभ कहते हैं। वज्र के समान अभेद्य होने से 'वज्रऋषभ' कहलाता हैं । वज्र के समान जो नाराच हैं वह वज्रनाराच कहलाता हैं। ये दोनों ही अर्थात् वज्र ऋषभ और वज्रनाराच, जिस वज्र शरीर सहनन में होते हैं, वह वज्र ऋषभ वज्रनाराच शरीर सहनन हैं। जिस कर्म के उदय से वज्रमय हड्डियाँ वज्रमय वेष्टन से वेष्टित और वज्रमय नाराच से कीलित होती हैं। वह वज्रऋषभ वज्रनाराच शरीर सहनन (ध-6/73) तत्रवज्रवस्थिरास्थिऋषभो वेष्टनं वज्रवत्वेष्टनकीलकबन्धोयतोभवति तद्बज्रवृषभनाराचसंहननं नाम। जिसके कारण वज्र की तरह स्थिर अस्थि और ऋषभ वेष्टन तथा वज्र की तरह वेष्टन और कीलक बन्ध होता है, उसे वज्रवृषभनाराच संहनन कहते (क.प्र./26) वज्रनाराचशरीरसंहनन नामकर्म एसोचेव हड्डबंधोवज्जरिसह वज्जिओजस्स कम्मस्य उदएण होदितं कम्मं वज्जणारायण शरीरसघंडणमिदि भण्णदे। यह पूर्वोक्त अस्थिबंध ही जिस कर्म के उदय से वज्रऋषभ से रहित होता हैं, वह कर्म 'वज्रनाराच शरीर सहनन' इस नाम से कहा जाता है। (ध-6/73) यतो वज्रव स्थिरास्थिकीलकबन्धसामान्यवेष्टनं च भवति तद्वज्रनाराचसंहननम्। जिसके कारण वज्र की तरह स्थिर अस्थि तथा कीलक बन्ध होता है तथा वेष्टन सामान्य होता है। उसे वज्रनाराच संहनन कहते हैं। (क.प्र./27) (72) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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