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________________ क्खंघस्ससरीरंगोवंगंणाम। जिस कर्म स्कंधके उदयसे शरीर के अंगउपांगों की, निष्पत्ति होती है उस कर्म स्कंध का 'शरीरांगोपांग' यह नाम है। (ध 6/54) यदुदपादङ्गोपाङ्गविवेकस्तदङ्गोपाङ्गनाम। जिसके उदय से अंगोपांगका भेद होता है वह अंगोपांग नाम कर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - इस नामकर्म के नहीं मानने पर आठों अंगों का और उपांगों का अभाव होजायेगा, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, अंग और उपांगों काअभाव पाया नहीं जाता। शरीर में दो पैर, दो हाथ, नितम्ब (कमर के पीछे का भाग) पीठ, हृदय और मस्तिष्क ये आठ अंग होते हैं। इनके सिवाय अन्य (नाक, कान, आँख इत्यादि) उपांग होते हैं। सिर में मूर्धा, कपाल, मस्तक, ललाट, शंख --- ---तालु और जीभ आदि उपांग होते हैं। (ध 6/54) शरीररांगोपांगनामकर्म के भेद जंतंसरीर अंगोवंगणामकम्मं तंतिविहं ओरालियसरीरअंगोवंगणामं वेउब्वियसरीर अंगोवंगणामंआहारसरीरअंगोवंगणामचेदि। जो शरीर अंगोपांग नामकर्म है वह तीन प्रकार का है - औदारिकशरीर अंगोपांग नामकर्म वैक्रियिकशरीर अंगोपांगनामकर्म और आहारकशरीर - अंगोपांगनामकर्म। (घ6/72) विशेष - तेजस और कार्मणशरीरके अंगोपांग नहीं होते हैं, क्योंकि, उनके हाथ, पांव, गला आदि अवयवों का अभाव है। (ध.6/73) औदारिकशरीरसंगोपांगनामकर्म जस्सकम्मस्सउदएणओरालियसरीरस्सअंगोवंगपच्चंगाणिउप्पज्जति तं ओरालियसरीर अंगोवंगणाम। जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर के अंग, उपांग और प्रत्यंग उत्पन्न होते हैं, वह औदारिक शरीर अंगोपांग नामकर्म हैं। (ध 6/73) वैक्रियिकशरीर अंगोपांगनामकर्म जस्सकम्मस्सउदएणवेउब्बियसरीरस्स अंगोवंग पच्चंगाणि उप्पज्जति तंवेउब्वियसरीरअंगोवंगणाम। (70) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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