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________________ शरीर के स्कंधों का जिस कर्म के उदय से छिद्र राहित्यपना होता है, वह औदारिक शरीर संघात नामकर्म है। (ध-6/70) तत्रौदारिकशरीराकारेण परिणतपरस्परबद्धपुद्गलानां तदाकारवैषम्याभावकारणमौदारिकशरीरसंघातनामकर्म। औदारिक शरीर के आकाररूपसे परिणत परस्पर बद्ध पुद्गलों के तदाकार वैषम्य के अभाव का कारण औदारिक शरीर संघात नाम कर्म है। (क.प्र./23) वैक्रियिक शरीर संघात नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण वेउब्वियसरीरक्खंधाणं सरीरभावमुवगयाणं बंधण णाम कम्मोदएण एगबंधणबद्धाण मट्ठत्तं होदितं वेउब्वियसरीर संघादं णाम। शरीर भाव को प्राप्त तथा बंधन नामकर्म के उदय से एक बन्धन बद्ध वैक्रियिक शरीर के स्कंधों का जिस कर्म के उदय से छिद्र राहित्यपना होता है। वह वैक्रियिक शरीर संघातनामकर्म है। (ध 6/70 आ) आहारक शरीरसंघातनामकर्म जस्स कम्मस्य उदएण आहारसरीरक्खंधाणं सरीरभावमुवगयाणं बंधणणाम कम्मोदएण एगबंधणबद्धाणमठ्ठत्तं होदितं आहारसरीरसंघादं णाम। शरीर भाव को प्राप्त तथाबंधन नामकर्म के उदयसे एकबंधन बद्ध आहारक शरीर के स्कंधों का जिस कर्म के उदय से छिद्र राहित्य पना होता है, वह आहारशरीर संघात नामकर्म है। (ध 6/70 आ) तैजस शरीर संघात नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण तेयासरीरक्खंधाणं सरीर भावमुवगयाण बंधणणाम कम्मोदएणएगबंधणबद्धाणमठ्ठत्तं होदितं तेयासरीरसंघादं णाम। शरीर भाव को प्राप्त तथा बंधन नामकर्म के उदय से एक बंधनबद्ध तैजस शरीर के स्कंधों का जिस कर्म के उदय से छिद्र राहित्यपना होता है, वह तैजस शरीर संघात नामकर्म है। (ध6/70 आ) (64) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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