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पसत्थापसत्थप्पयतेयासरीरसरुवेण परिणमंति तं तेयासरीरं णाम, कारणे कज्जुवयारादो। जिस कर्म के उदय से तैजस वर्गणा के स्कंध निस्सरण अनिस्सरणात्मक
और प्रशस्त अप्रशस्तात्मक तैजस शरीर के स्वरूप से परिणत होते हैं, वह कारण में कार्य के उपचार से तैजस शरीर नामकर्म कहलाता है।
(ध. 6/69) शरीरस्कन्धस्य पद्मरागमणिवर्णस्तेजः, शरीरान्निर्गतरश्मिकलापःप्रभा, तत्र भवं तैजसं शरीरम्। शरीर स्कन्धके पद्मरागमणि के समान वर्णका नाम तेज है। तथा शरीर से निकली हुई रश्मि कलापका नाम प्रभा है। इसमें जो हुआ है वह तैजस शरीर है। तेज और प्रभागुण से युक्त तैजस शरीर है ।
__ (ध. 14/327-328) यत्तेजोनिमितं तेजसिवाभवं तत्तैजसम्। जो दीप्ति का कारण है या तेज में उत्पन्न होता है उसे तैजस शरीर कहते हैं।
___ (स.सि. 2/36) कार्मणशरीर नामकर्म
जस्स कम्मस्स उदओकुंभंडफलस्सवेंटोव्व सव्वकम्मासयभूदो तस्स कम्मइयसरीरमिदिसण्णा। जिस कर्म का उदय कूष्मांडफल (कुमङा का फल) के वेंट के समान सर्व कर्मों का आश्रयभूत हो, उस कर्म की 'कार्मण शरीर' यह संज्ञा है।
(ध. 6/69) कम्मेव च कम्म-भवं कम्मइयं तेण.. । ज्ञानावरणादि आठ प्रकार के कर्म स्कन्धको कार्माण शरीर कहते हैं, अथवा जो कार्मण शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न होता है उसे कार्मण शरीर कहते हैं ।
(ध 1/297) कर्मणां कार्य कार्मणम्। कर्मों का कार्य कार्मण शरीर है।
(स.सि. 2/36) शरीरबंधन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण जीवेण संबद्धाणं वग्गणाणं अण्णोण्णं संबंधो
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