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________________ और वृक्ष आदि के आकारवाले हो जायेंगे। किन्तु इस प्रकार हैं नहीं, क्योंकि, इस प्रकारके वे पाये नहीं जाते तथा प्रतिनियत सदृश परिणामोंमें अवस्थित वृक्ष आदि पाये जाते हैं। (ध 6/52) जातिनामकर्म के भेद जंतंजादिणामकम्मंतं पंचविहं एइंदिय जातिणामकम्मं बीइंदियजादिणामकम्मं तीइंदिजादिणामकर्मचउरिंदियजादिणाम कम्म, पंचिंदिय जादिणामकम्मं चेदि। जो जाति नाम कर्म है वह पांच प्रकार का है - एकेन्द्रिय जातिनामकर्म, द्वीन्द्रिय जातिनामकर्म, त्रीन्द्रियजाति नाम कर्म, चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म और पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म । (ध 6/67) एकेन्द्रियजाति नामकर्मः एइंदियाणमेइंदिएहि एइंदियभावेणजस्स कम्मस्स उदएणसरिसत्तं होदि तं कम्ममइंदियजादिणाम। जिस कर्म के उदय से एकेन्द्रिय जीवों की एकेन्द्रिय जीवों के साथ एकेन्द्रिय भाव से सदृशता होती है वह एकेन्द्रिय जाति नामकर्म कहलाता है। (ध. 6/67) तत्रस्पर्शनेन्द्रियवन्तो जीवा भवन्ति यतःसाएकेन्द्रियजातिः। जिसके कारण जीव केवल स्पर्शन इन्द्रियवान् होता है, वह एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म है। (क.प्र./19) यदुदयात्मा एकेन्द्रिय इति शब्द्यते तदेकेन्द्रियजातिनाम। जिसके उदय से आत्मा एकेन्द्रिय कहा जाता है वह एकेन्द्रिय जाति नामकर्म (स.सि. 8/11) विशेष - एकेन्द्रियजातिनामकर्म भी अनेक प्रकारका है। यदि ऐसा न माना जाय, तो जामुन, नीम, आम, निब्बू, कदम्ब, इमली, शाली, धान्य, जौ और गेहूँ आदि जातियोंका भेद नहीं हो सकता है। (ध. 6/67-68) द्वीन्द्रिय जातिनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं वीइंदियत्तणेण समाणतं होदितं कम्म बीइंदियणाम। जिस कर्म के उदय से जीवों की द्वीन्द्रियत्व की अपेक्षा समानता होती है वह (55) Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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