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मिच्छत्त भावणाए, मोगाउंबंधिऊण ते सव्वे ।। पच्छारखाइयसम्मं गेण्हति जिणिंदचरणमूलम्हि ।। प्रतिश्रुतिको आदि लेकर नाभिराय पर्यन्त में चौदह मनु पूर्वभव में विदेह क्षेत्र के भीतर महाकुल में राजकुमार थे। वे सब संयम तप और ज्ञान से युक्त पात्रों के लिए दानादिक के देने में कुशल, अपने योग्य अनुष्टान से संयुक्त
और मार्दव आर्जव गुणों से सहित होते हुए पूर्व में मिथ्यात्व भावना से भोगभूमिकी आयुको बाँधकर पश्चात् जिनेन्द्र भगवान के चरणों के समीप
क्षायिक सम्यक्त्व को ग्रहण करते हैं। (ति.प. 4/511-13) सुभोग भूमिज मनुष्यायुके बन्धयोग्य परिणाम
मोगमहीए सव्वे, जायंते मिच्छभावसंजुत्ता । मंदकसायामाणुवा, पेसुण्णासूयदंबपरिहीणा ॥ वज्जिद मंसाहारा, मधुमज्जोदुंबरेहिं परिचत्ता । सच्चजुदा मदरहिदा, वारियरपदारपरिहीणा ॥ गुणधरगुणेसु रता, जिणपूजंजे कुणंति परवसतो। उववासतणु-सरीरा, अज्जवपहुदीहिं संपण्णा ॥ आहारदाणणिरदा, जदीसु वरविविहजोगजुत्तेसुं । विमलतरसंजमेसु, य विमुक्कगंथेसु भत्तीए ॥ पुव्वं बद्धणराऊ, पच्छा तित्थयरपादमूलम्मि । पाविदखाइयसम्मा, जायंते केई भोग भूमीए ॥ एवं मिच्छाइट्ठि, णिग्गंथाणं जदीण दाणाई । दादूण पुण्णपाके भोगमही केइजायंति ॥ आहाराभयदाणं, विविहोसहपोत्थयादिदाणं च । सेसे णाणोयणं दादूणं, भोगभूमि जायते ॥ भोग भूमि में वे सब जीव उत्पन्न होते हैं जो मिथ्यात्व भाव से युक्त होते हुए भी मन्दकषायी हैं, पैशुन्य, असूयादि एवं दम्भ से रहित हैं, मांसाहार के त्यागी हैं, मधुमद्य और उदुम्बर फलों के भी त्यागी हैं, सत्यवादी हैं, अभिमान से रहित हैं, वेश्या और परस्त्री के त्यागी हैं, गुणियों के गुणों में अनुरक्त हैं, पराधीन होकर जिनपूजा करते हैं, उपवास से शरीर को कृश करने वाले हैं, आर्जव आदि से सम्पन्न हैं, तथा उत्तम एवं विविध प्रकार के योगों से युक्त, अत्यन्त निर्मल सम्यक्त्व के धारक और परिग्रह से रहित, ऐसे यतियों को भक्ति से आहार देने में तत्पर हैं। जिन्होंने पूर्व भव में मनुष्यायु को बाँध
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