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________________ यदुदयाद्देशादिष्वौत्सुक्यं सारतिः। अरतिस्तद्विपरीता। जिसके उदय से देश आदि में उत्सुकता होती है वह रति है। अरति इससे विपरीत है। (स.सि. 8/9) शोक शोचनं शोकः, शोचयतीति वा शोकः । जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण जीवस्ससोगो समुप्पज्जइतेसिं सोगो त्तिसण्णा। सोच करने को शोक कहते हैं । अथवा जो विषाद उत्पन्न करता है, उसे शोक कहते हैं । जिन कर्म स्कंधों के उदय से जीव के शोक उत्पन्न होता है उनकी ‘शोक' संज्ञा है। (ध. 6/47-48) यतःशोचयतिरोदयतिसशोकः। जिसके कारण शोक करे, वह शोक है। (क.प्र./14) यद्विपाकाच्छोचनं सशोकः। जिसके उदय से शोक होता है वह शोक है। (स.सि. 8/9) भय भीतिर्मयम् । जेहिं कम्मक्खंघेहिं उदयमागदेहि जीवस्स भयमुप्पज्जइ तेसिं भयमिदिसण्णा, कारणे कज्जुवयारादो। भीति को भय कहते हैं। उदय में आये हुए जिन कर्म स्कंधों के द्वारा जीव के भय उत्पन्न होता है उनकी कारण में कार्य के उपचार से 'भय' यह संज्ञा है। (ध.6/48) जस्स कम्मस्स उदएणजीवस्स सत्त भयाणि समुप्पजतितं कम्मं भयं णाम। जिस कर्म के उदय से जीव के सात प्रकार का भय उत्पन्न होता है, वह भय कर्म है। (ध. 13/361) परचक्कागमादओभयंणाम। पर चक्र के आगमनादिका नाम भय है। (ध.13/336) यतो बिभेत्यनर्थात्तद्भयम्। जिसके कारण अनर्थ से डरे, वह भय है। (क.प्र./14) यदुदयादुद्वेगस्तद्भयम्। (28) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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