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________________ जिसके कारण चलते, किसी स्थान पर ठहरते, बिस्तर पर बैठते नींद आती है, उसे निद्रा कहते हैं। (क.प्र./8) मदखेदक्लमविनोदनार्थःस्वापो निद्रा। मद, खेद और परिश्रमजन्य थकावट को दूर करने के लिये नींद लेना निद्रा (स.सि. 8/7) प्रचला पयलाए तिव्वोदएणवालुवाए भरियाई व लोयणाई होति, गरुवमारोहव्वं वसीसं होदि, पुणो पुणो लोयणाइं उम्मिल-णिमिल्लणं कुणंति। प्रचला प्रकृति के तीव्र उदय से लोचन वालुका से भरे हुए के समान हो जाते हैं, सिर गुरुभार को उठाये हुए से समान भारी हो जाता है और नेत्र पुनः पुनः उन्मीलन एवं निमीलन करने लगते हैं। (ध. 6/32) जिस्से पयडीए उदएण अद्धसुत्तस्स सीसं मणा मणा चलदि सा पयला णाम। जिस प्रकृति के उदय से आधे सोते हुए का सिर थोड़ा थोड़ा हिलता रहता है वह प्रचला प्रकृति है। ___ (ध. 13/354) यत ईषदुन्मील्य स्वपिति सुप्तोऽपीषदीपज्जानाति सा(प्रचला)। जिसके कारण कुछ आँख खोलकर सोये तथा सोते हुए भी कुछ-कुछ जानता रहे, उसे प्रचला कहते हैं। (क.प्र./8) या क्रियात्मानं प्रचलयतिसाप्रचलाशोकश्रममदादिप्रभवा आसीनस्यापि नेत्रगात्रविक्रियासूचिका। जो शोक, श्रम और मद आदि के कारण उत्पन्न हुई है और जो बैठे हुए प्राणी के भी नेत्र, गात्र की विक्रिया की सूचक है ऐसी जो क्रिया आत्मा को चलायमान करती है, वह प्रचला है। (स.सि. 8/7) प्रचलुदपेण यजीवो ईसुम्मीलिप सुवेई सुत्तो वि। ईसं ईसं जाणदि मुहूं मुहूं सोवदे मंदं ॥ प्रचला के उदय से जीव किंचित् नेत्र को खोलकर सोता है । सोता हुआ कुछ जानता रहता है। बार-बार मन्द सोता है । अर्थात् बारबार सोता व जगता रहता है। (गो.क. मू. /25) (10) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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