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________________ ऐसा है नहीं, क्योंकि संसारमें उच्छ्वास रहित जीव पाये नहीं जाते। (ध. 6/60) आतप नामकर्म आतपनमातपः। जस्सकम्मस्सउदएणजीवसरीरे आदओहोज्ज, तस्स कम्मस्स आदओत्ति सण्णा। सोष्णः प्रकाशः आतपः। खूब तपने को आतप कहते हैं। जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में आतप होता है, उस कर्म की 'आतप' यह संज्ञा है। उष्णता - सहित प्रकाश को आतप कहते हैं। (ध 6/60) जस्स कम्मस्सुदएणसरीरे आदाओ होदितं आदावणामं । सोष्णप्रभा आतापः। जिस कर्म के उदय से शरीर में आताप होता है वह आताप नामकर्म है। उष्णता सहित प्रभा का नाम आताप है। (ध 13/365) आतपनामोष्णप्रभांकरोतितत् सूर्यबिम्बेबादरपर्याप्तपृथ्वीकायिक भवति। आतप नामकर्म उष्ण प्रभा करता है। वह सूर्य बिम्ब में स्थित बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों को होता है। (क.प्र./31) यदुदयान्निवृत्तमातपनं तदातपनाम। जिसके उदय से शरीर में आतप की रचना होती है वह आतपनामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - यदि आतपनामकर्म न हो, तो पृथिवीकायिक जीवोके शरीररूप सूर्य-मंडलमें आतपका अभाव हो जाय। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वैसा पाया नहीं जाता। (ध. 6/60) उद्योतनामकर्म उद्योतनमुद्योतःजस्स कम्मस्स उदएणजीवसरीरे उज्जोओ उप्पज्जदि तं कम्मं उज्जोवं णाम। उद्योतन अर्थात् चमकने को उद्योत कहते हैं । जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में उद्योत उत्पन्न होता है वह उद्योत नामकर्म है। (ध 6/60) उद्योतनाम शीतलप्रभां करोति, तत् चन्द्रतारकादिबिम्बेषु तेजोवायुसाधारणवर्जितचन्दतारकादि बिम्बजनितबादरपर्याप्त तिर्यग्जीवेषु भवति। (87) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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