SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ •संदृष्टि नं. 54 क्षायिकसम्यक्त्व आस्रव 48 क्षायिकसम्यक्त्व में 48 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 12 अविरति, योग 15 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 7-औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण काययोग), अप्रत्याख्यानादि कषाय 12, नोकषाय 9। गुणस्थान अविरत आदि ग्यारह होते हैं। आस्रव अभाव गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति | आस्रव 4.अक्स्ति [गुणस्थानक्त 46 [गुणस्थानवत् 2[आहारक और आहास्वमिश्र काययोग] 5.देशविस्त | 15 [गुणस्थानवत] 37 गुणस्थानक्त] 11[उपयुत्त2+9 (सअविरति, अप्रत्याख्यान4 औदारिकमिश्र, वैक्रियिकद्विक और कार्मणकाययोग)] 6.प्रात्तसंयम | 2[गुणस्थानवत 24 [गुणस्थानवत् 24[12अविरति, अप्रयाख्यानादि कषाय, औदारिकमिश्र वैक्रियिकद्विक और कार्मणकाययोग] 7. अप्रमत्त संयम 22 गुणस्थानक्त 26 [उपर्युति 24+2 (आहारकऔर आहारथमिश्र काययोग)] 8.अपूर्व- करण गुणस्थानक्त्] 22 [गुणस्थानक्त 26 [उपर्युक्त 9.अनिवृत्ति- | 1 गुणस्थानवत करणभाग। 16 [गुणस्थानक्त] 32[उपयुत्त 26+ हास्य आदिनोक्षाय [79] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy