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कृष्णादिकसासादने वैक्रियिकमिश्रच्छित्तिः भवेत् तेजस्त्रिके। मिथ्यात्वदिस्थाने औदारिकमिश्रं नास्ति अविरतेऽस्ति ।
अर्थ - कृष्ण, नील लेश्या के सासादन गुणस्थान में वैक्रियिकमिश्र की व्युच्छित्ति होती है। पीत, पद्म और शुक्ल लेश्या के मिथ्यात्व, सासादन गुणस्थान में औदारिक मिश्र नहीं है, किन्तु चतुर्थ गुणस्थान में है।
•संदृष्टि नं. 45
केवलदर्शन आम्रवन केवल दर्शन में 7 आम्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - सत्य, अनुभय मनोयोग, सत्य, अनुभय वचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग। गुणस्थान सयोग केवली और अयोग केवली ये दो होते हैं।
आस्रव अभाव
गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति
आस्रव 13.सयोग | 7 [सत्य,अनुभय [सत्य, अनुभय मनोयोग, सत्य, केली | मनोयोग, सत्य, अनुभय अनुभय वचनयोग, औदारिकद्धिक
वचनयोग, औदारिकद्विका और कार्मणकाययोग] और कार्मणकाययोग
14.अयोग
केवली
7 [उपयुक्त
संदृष्टि नं. 46
कृष्ण-नीललेश्या आस्रव 55 कृष्ण-नीललेश्या में 55 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 13 (मनयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण), कषाय 16 , नोकषाय 9। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं।
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