________________
गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति
4. अविस्त
गुणस्थान
1. मिथ्यात्व
9 [अप्रत्याख्यान क्रोध
आदि 4, त्रस अविरति | औदारिकमिश्र, | वैक्रियिकद्विक और कार्मण काययोग ]
12. सासादन 3. मिश्र
4. अविरत
चक्षु अचक्षु दर्शन में 57 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, 15 योग, कषाय 25 ( कषाय 16, नोकषाय 9 ) । गुणस्थान मिथ्यात्व आदि बारह होते हैं । इसकी संदृष्टि गुणस्थान के समान जानना चाहिये । (देखें संदृष्टि नं. 1 )
5. देशविस्त
6. प्रमत्तविस्त
7. अप्रमत्तविरत
8. अपूर्वकरण
| 9. अनिवृत्तिकरण भाग 1
भाग 2
भाग 3
भाग 4
भाग 5
भाग 6
| 10. सूक्ष्यसाम्परायसंयत 11. उपशांतमोह
12. क्षीणमोह
आस्रव
आस्रव अभाव
46 [ उपर्युक्त 43 + 3 (औदारिकमिश्र, 9 [5 मिथ्यात्व, 4 अनंतानुबंधी ] वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग)]
Jain Education International
संदृष्टि नं. 43
चक्षु-अचक्षु दर्शन आस्रव 57
| आस्रव व्युच्छित्ति
5
4
0
9 [असंयम के अविरत
गुणस्थानवत्]
15
2
0
6
1
1
1
1
1
1
1
०
4
आस्रव
55
50
43
46
37
24
22
22
16
15
14
13
12
11
10
9
9
For Private & Personal Use Only
-
आस्रव अभाव
2
7
14
11
20
33
35
35
41
42
43
44
45
46
47
48
48
[67]
www.jainelibrary.org