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________________ संदृष्टि नं. 39 सूक्ष्यसांपराय संयम आस्रव 10 सूक्ष्यसांपराय संयम में 10 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - योग 9 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, औदारिककाययोग), संज्वलन लोभ । गुणस्थान एक मात्र सूक्ष्मसांपराय संयम होता है। आस्रव अभाव गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव 10.सूक्ष्य | 10[मनोयोग 4,चनयोग4, साम्पराय औदारिककाययोग, संज्वलन लोभ] संगत संदृष्टि नं. 40 यथाख्यात संयम आस्रव 11 यथाख्यात संयम में 11 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - योग 11 - मनोयोग 4, वचनयोग 4, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग । गुणस्थान उपशांत मोह आदि चार होते हैं। गुणस्थान |आस्रव व्युच्छित्ति | आस्रव 11.उपांत 9 [मनोयोग 4,क्चनयोग4, औदारिककाययोग आस्रव अभाव |2 [औदारिक मिश्रऔर कार्मण काययोग 12. क्षीणमोह |4[गुणस्थानक्त] |2[उपर्युत्त] [गुणस्थानक्त्] गुणस्थानवत्] 7 [गुणस्थानवत् 13.सयोग केवली 4[असत्य, उभय मनोयोग, असत्य, उभयवचनयोग] | 14.अयोग केवली 11[उपर्युक्त4+ सत्य, अनुभय मनोयोग, सत्य, अनुभयवचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिक मिश्र और कार्मणकाययोग] [65] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
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