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एकविकलेन्द्रियजाते सासादनस्थाने न भवति औदारिकं । एषामनुभयं च वचनं तयोः मिथ्यात्वे एव व्युच्छेदः ॥
अर्थ - एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के सासादन गुणस्थान में औदारिक काययोग और अनुभय वचनयोग नहीं होता है क्योंकि इन दोनों की मिथ्यात्व गुणस्थान में व्युच्छित्ति हो जाती है। यहाँ पर जो मिथ्यात्व गुणस्थान में अनुभय वचनयोग की व्युच्छित्ति कही गई है, वह विकलेन्द्रियों के ही समझना चाहिए। क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों के वचनयोग नहीं होता है।
संदृष्टि नं. 13
एकन्द्रिय आस्रव 38 एकन्द्रिय के 38 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 7 अविरति (षट्काय एवं स्पर्शन इन्द्रिय), योग 3 (औदारिक, औदारिक मिश्र और कार्मण काययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि दो होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति
आस्रव
आस्रव अभाव 1. मिथ्यात्व 6 [5 मिथ्यात्व, 38 [5 मिथ्यात्व, 7 अविरति औदारिककाययोग] (षट्काय एवं स्पर्शन इन्द्रिय),
योग 3 (औदारिक, औदारिकमिश्रा और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोक्षाय 7- हास्य, | रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा,
नपुंसक्वेद)]] 2. सासादन 4 [अनंतानुबंधी 32 [उपर्युक्त 38-6 (5 मिथ्यात्व, 6 [5 मिथ्यात्व, 4 कषाय] औदारिककाययोग)]
औदारिककाययोग]
संदृष्टि नं. 14
द्वीन्द्रिय आस्रव 40 द्वीन्द्रिय के 40 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 8 अविरति (षट्काय एवं स्पर्शन, रसना इन्द्रिय), योग 4 (अनुभय वचन, औदारिक, औदारिक मिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 -
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