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________________ संदृष्टि नं. 8 भोगभूमिज मनुष्य आस्रव 52 भूमिभूमिज मनुष्य के 52 आम्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - औदारिक, औदारिकमिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 24 (कषाय 16, नोकषाय 8 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव । आस्रव अभाव 1. मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व 152[5 मिथ्यात्व, 12अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 14, काययोग 3 - औदारिक, औदारिकमिश्रऔर कार्मण), कषाय 24 (कषाय 16, नोकषाय 8 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद)] 2. सासादन 4 [अनंतानुबंधी 4 47 [उपर्युक्त 52 - 5 मिथ्यात्व] | 5 [5 मिथ्यात्व] कषाय] 3.मिश्र |41 [उपयुत47-6 (4 अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग)] 11[5 मिथ्यात्व, 4 अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग] 4.अविस्त 43 [मिथ्यात्वगुणस्थानके52-9 | 9[5 मिथ्यात्व, (5 मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी 4)] | 4 अनंतानुबंधी] | 7 [अप्रत्याख्यान क्रोध आदि 4, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग, त्रस अविरति] [30] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
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