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विशेष - उपर्युक्त गाथा में गुणस्थान सम्बन्धी आस्रवों का अभाव मात्र निरूपित है अन्य व्यवस्था यहाँ नहीं कही गई है। जैसे - सासादन गुणस्थान में आहारक काययोग और आहारकमिश्र काययोग का भी अभाव पाया जाता है, किन्तु इन दोनों का इस गुणस्थान में कथन नहीं किया गया है। मात्र सासादन गुणस्थान सम्बन्धी पाँच मिथ्यात्वों के अभाव का उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार आगे के गुणस्थान सम्बन्धी व्यवस्था जानना चाहिए।
दो मिस्स कम्म खित्तय तसवह वेगुव्व तस्स मिस्सं च। ओरालमिस्स कम्ममपचक्खाणं तु ण हि पंचे।|13|| ढे मिश्रे कर्म क्षिप, सवधो वैक्रियिकं तस्य मिश्रं च ।
औदारिकमिभं कर्माप्रत्याख्यानं तु न हि पंचमे ।। अर्थ - पंचम गुणस्थान में औदारिक मिश्र काययोग, आहारक मिश्र काययोग, त्रसवध, वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग, औदारिक मिश्र काययोग तथा अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया और लोभ इन आम्रवों का अभाव है।
इत्तो उवरिं सगसगविच्छित्तिअणासवाण संजोगे। उवरूवरि गुणठाणे होतित्ति अणासवा णेया ।।14|| इत: उपरि स्वस्वविच्छित्त्यासवाणां संयोगे। उपर्युपरि गुणस्थाने भवन्तीति अनासवा ज्ञेयाः॥
अर्थ - पंचम गुणस्थान से आगे के गुणस्थानों में अपने-अपने गुणस्थान में होने वाली व्युच्छित्ति रूप आम्रवों का सद्भाव तथा इसके ऊपर के गुणस्थानों में उन आस्रवों का अभाव होता है अर्थात् जिन आम्रवों की पूर्व के गुणस्थानों में व्युच्छित्ति होती है उनका ही आगे के गुणस्थानों में अभाव होता है। ऐसा जानना चाहिए।
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