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ब्रह्महेमचंद्रविरचित उत्पत्ति हुई। जिसमें अन्तिम कुलकर का नाम नाभिराय था तथा उनकी पत्नी का नाम मरुदेवी था।
विशेषार्थ - एक कल्पकाल 20 कोड़ा कोड़ी सागर का होता है, उसके दो भेद होते हैं - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। प्रत्येक के 6 भेद होते हैं। इसमें उत्सर्पिणी काल 10 कोड़ा-कोड़ी सागर प्रमाण है तथा अवसर्पिणी भी 10 कोड़ा-कोड़ी सागर प्रमाण है। उत्सर्पिणी के 10 कोड़ा-कोड़ी सागर व्यतीत हो जाने पर एवं अवसर्पिणी के उत्तम, मध्यम भोगभूमि काल के व्यतीत होने पर तथा जघन्य भोगभूमि संबंधी काल के पल्य के आठमें भाग शेष रहने पर कुलकरों की उत्पत्ति होना प्रारम्भ होती है। जिसमें अंतिम कुलकर नाभिराय हुये थे। उनकी पत्नी का नाम मरुदेवी था।
सुसमदुसमाइअंते वासतयं अट्ठमासपक्खा य। चुलसीदिलक्खपुव्वं णाहीसुयरिसहउप्पत्ती ।।4।।
अर्थ :- सुषमा दुषमा (जघन्य भोगभूमि) काल के अंत में 84 लाख पूर्व तीन वर्ष 8 माह और एक पक्ष शेष रहने पर नाभिराय कुलकर के ऋषभ नाम के पुत्र की उत्पत्ति हुई।
वीसं लक्खं पुव्वं वालत्तणि रज्जि लक्खतेसट्ठी। णीलंजसाविणासो दिट्ठो संसारविरदो य॥5॥
लइओ चरित्तभारो छदमत्थे वरससहसु गउकालो। केवलणाणुप्पणो देवागमु तत्थ संजादो ।।6।।
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