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ब्रह्महेमचंद्रविरचित
अर्थात् नित्य है अथवा अद्वैत है, इत्यादि दर्शन भेदों का भी इसमें निरूपण किया जाता है ।
पण अहियं पणसुण्णं पणपणणवअंकपुव्वपरिमाणं । पुव्वग्गयपुव्वगं
उप्पायवयधुवाणं
वंदे ॥ 30 ॥
955000005
अर्थ :- पूर्वगत नामक दृष्टिवाद नाम का अर्थाधिकार पंचानवें करोड़ पचास लाख और पाँच पदों द्वारा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य आदि का वर्णन करता है । ऐसे पूर्वगत श्रुत की मैं वंदना करता हूँ ।
तित्थयर - चक्कवट्टी - वलदेवा - वासुदेवपडिसत्तू । पंचसहस्सपयाणं एसकहा पढमअणिओगो ॥31॥
5000
अर्थ :- जो श्रुत ज्ञान तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिनारायण की कथाओं का पाँच हजार पदों के द्वारा वर्णन करता है, वह दृष्टिवाद अंग का प्रथमानुयोग नाम का अर्थाधिकार है ।
विशेषार्थ बारह प्रकार का पुराण, जिनवंशों और राजवंशों के विषय में जो सब जिनेन्द्रों ने देखा है या उपदेश दिया है, उस सबका वर्णन करता है। इनमें प्रथम पुराण अरहन्तों का, द्वितीय चक्रवर्तियों के वंश का, तृतीय वासुदेवों का, चतुर्थ विद्याधरों का, पाँचवाँ चारणवंश का, छठा प्रज्ञाश्रमणों का, सातवाँ कुरुवंश का, आठवाँ हरिवंश का, नौवाँ इक्ष्वाकुवंशजों का, दशवाँ काश्यपों का व काशिकोंका, ग्यारहवाँ
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