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ब्रह्माहेमचंद्रविरचितहोने से एक प्रमाण से द्रव्यों का समवाय होने के कारण द्रव्यसमवाय कहा जाता है। जम्बूद्वीप, सर्वार्थसिद्धि, अप्रतिष्ठान नरक और नन्दीश्वरद्वीपस्थ एक वापी, इनके समान रूप से एक लाख योजन विस्तान प्रमाण की अपेक्षा क्षेत्रसमवाय होने से क्षेत्रसमवाय है। सिद्धि क्षेत्र, मनुष्य क्षेत्र, ऋतुविमान और सीमन्त नरक, इनके समान रूप से पैंतालीस लाख योजन विस्तार प्रमाण से क्षेत्रसमवाय है। उत्सर्पिणी
और अवसर्पिणी कालों के समान दस सागरोपम कोड़ा-कोड़ि समान दस सागरोपम कोड़ा-कोड़ि प्रमाण की अपेक्षा कालसमवाय होने से काल समवाय है। क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और यथाख्यातचारित्र, इनका जो भाव उसके अनुभव के तुल्य अनन्त प्रमाण होने का कारण भवसमवाय होने से भावसमवाय है।
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किं अत्थि णत्थि जीवो गणहरसट्ठीसहस्सकयपण्हा। अडदुगदोयतिसुण्णं पयसंखविवायपण्णत्ती ।।14||
228000 अर्थ :- गणधर परमेष्ठी द्वारा कृत क्या जीव है ? क्या जीव नहीं है ? इत्यादि साठ हजार प्रश्नों के उत्तरों का जिसमें कथन पाया जाता है तथा जिसकी पद संख्या दो लाख अट्ठाइस हजार है, वह व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक अंग है।
विशेषार्थ - दो लाख अट्ठाईस हजार पद प्रमाण व्याख्याप्रज्ञप्ति में क्या जीव है, क्या जीव नहीं है, जीव कहाँ उत्पन्न होता है और कहां से आता है, इत्यादिक साठ हजार प्रश्नों के उत्तरों का निरूपण किया जाता है।
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