________________
पाठ - 7 दशरथप्रव्रज्या
1.
सब लोगों के ऐसे कर्मफल को सुनकर संसार भ्रमण से डरा हुआ राजा प्रव्रज्या लेने की इच्छा करता है।
2.
शीघ्र ही सामन्त बुलाए गए। मंत्रीजनों के साथ (वे) आ गए। सिर से प्रणाम करके उत्तम आसनों पर बैठे।
हे स्वामी! आज्ञा दें (कि) क्या किया जाना चाहिए? (ऐसा) सुभटों के द्वारा वार्तालाप किया गया। दशरथ के द्वारा कहा गया कि आज (हम) प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं (करेंगे)।
4.
तब मंत्री उनको कहते हैं (कि) हे स्वामी! आज क्या कारण उत्पन्न हुआ है जिससे कि आप धन एवं समस्त स्त्री-समूह को छोड़ने के लिए (प्रव्रज्या के लिए) उद्यत हुए हो।
5.
तब राजा कहता है कि हे मनुष्यों (तुम्हारे) समक्ष यह (स्पष्ट है कि) (जैसे) सूखा हुआ तिनका असार है (उसी प्रकार) सारा जगत (असार) है (और) मरणरूपी अग्नि से लगातार जलाया जाता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
67
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org