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विजयरामो धक्कामुक्केण
केसवो
त्ति
सव्वो
वृत्तंतो
नरिंदस्स
अग्गे
कहिओ
नरिंदो
वि
तस्स
बुद्धीए
अईव
तुट्ठो
उवएसो
जामायरचउक्कस्स
सुणिऊण
पराभवं
ससुरस्स
गिहावासे
सम्माणं
जाव
संवसे'
1.
342
(विजयराम ) 1/1
[(धक्का) - (मुक्क) 3 / 1]
( केसव ) 1 / 1
अव्यय
(सव्व) 1 / 1 स
( वुत्तंत) 1 / 1
( नरिंद) 6/1
( अग्ग) 7/1
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( कह ) भूकृ 1 / 1
( नरिंद) 1 / 1
अव्यय
(त) 6 / 1 स
(बुद्धि) 3 / 1
अव्यय
(तुट्ठ) भूकृ 1 / 1 अनि
( उवएस ) 1 / 1
[ ( जामायर) - ( चउक्क ) 6 / 1 वि]
(सुण) संकृ
( पराभव ) 2/1
(ससुर) 6/1
[(गिह) + (आवास) ] [(गिह) - (आवास) 7/1]
( सम्माण ) 2 / 1 क्रिवि
अव्यय
(संवस) विधि 2 / 1 अक
अपभ्रंश का प्रत्यय है ।
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विजयराम
धक्का-मुक्के से
केशव
इस प्रकार
सभी
वृत्तान्त
राजा के
सामने
कहे गये
राजा
भी
उसकी
बुद्धि से
अत्यन्त
सन्तुष्ट हुआ
उपदेश
चार दामादों के
सुनकर
पराभव को
ससुर के
गृहवास में
सम्मानपूर्वक ही
रहो
the the
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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