SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जामाया मित्ताणं' कहे अहुणा एत्थ वसणं न जुत्तं नियघरं मि अओ साउभोयणं अत्थि तओ इओ गमणं चिय सेयं ससुरस्स पच्चूसे कहिऊण गमिस्सामि ते कहिंति भो मित्त विणा मुल्लं भोयणं 1. 324 (जामाउ ) 1 / 1 ( मित्त) 4/2 ( कह) व 3 / 1 सक अव्यय अव्यय ( वसण) 1 / 1 अव्यय ( जुत्त) 1 / 1 वि [ ( निय) वि - (घर) 7/1] अव्यय [ ( साउ) वि - (भोयण) 1 / 1 ] (अस) व 3 / 1 अक अव्यय Jain Education International अव्यय (गमण ) 1 / 1 अव्यय (सेअ) 1/1 (ससुर) 4/1 ( पच्चूस ) 7/1 (कह) संकृ (अहं) 1 / 1 स (गम) भवि 1 / 1 सक (त) 1/2 स (कह) व 3 / 2 सक ( भो मित्त) 8 / 1 अव्यय ( मुल्ल) 2 / 1 ( भोयण) 1 / 1 'कह' क्रिया के साथ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। For Private & Personal Use Only दामाद ने मित्रों को कहता है ( कहा ) अब यहाँ रहना नहीं ठीक (है) निजघर में इसकी अपेक्षा स्वादिष्ट भोजन sc इसलिए यहाँ से गमन ही उत्तम ससुर को प्रभात में कहकर मैं जाऊँगा वे (उन्होंने) कहते हैं ( कहा ) हे मित्र! बिना मूल्य भोजन प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy