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________________ देहस्स खणभंगुरत्तणेण जयम्मि धम्मो एव सारु सार त्ति उवदिट्टो सव्वण्णुधम्माराहगो जाओ अज्ज पंचवासा अव्यय और (देह) 6/1 देह की [(खण)-(भंगुरत्तण) 3/1] क्षणभंगुरता से (जय) 7/1 जगत में (धम्म) 1/1 धर्म अव्यय (सार)11/1 अव्यय इस प्रकार (उवदिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि बताया गया (अम्ह) 1/1 स [(सव्वण्णु)-(धम्म)-(आराहग) 1/1] सर्वज्ञ के धर्म का आराधक (जाअ) भूकृ 1/1 अनि बना अव्यय आज [(पंच)-(वास) 1/2] पाँच वर्ष (जाय) भूकृ 1/2 अनि अव्यय इसीलिए (वहू) 3/1 बहू के द्वारा (अम्ह) 2/1 स (उद्दिस्स) संकृ अनि लक्ष्य करके [(पंच)-(वास) 1/2] पाँच वर्ष (कह) भूकृ 1/2 कहे गये (त) 1/1 स (सच्च) 1/1 सत्य अव्यय इस प्रकार (कुडुंब) 4/1 कुटुम्ब के लिए [(धम्म)-(पत्ति) 6/1] धर्मलाभ की (वट्टा) 3/1 वार्ता से (विउसी) 6/1 जाया तओ वहूए मुझको उद्दिस्स पंचवासा कहिआ वह सच्चं कुडुबस्स धम्मपत्तीए वट्टाए विउसीए विदुषी 1. 2. अपभ्रंश का प्रत्यय है। अपभ्रंश का शब्द है। 302 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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