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________________ पाठ-10 विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं (विउसी) 6/1 वि [(पुत्त)-(बहू) 6/1] (कहाणग) 1/1 विदुषी पुत्रवधू का कथानक 1. कम्मि किसी नगर में नयरे लच्छीदासो सेट्टी लक्ष्मीदास सेठ वरीवह (क) 7/1 स (नयर) 7/1 (लच्छीदास) 1/1 (सेट्ठि) 1/1 [(वरी) (अव्यय)वट्टइ (वट्ट) व 3/1 अक] (त) 1/1 स [(बहु) वि-(धण)-(संपत्ति) 3/1] (गविट्ठ) 1/1 वि (अस) भूका 3/1 अक [(भोग)-(विलास) 7/2] भली प्रकार, रहता (था) बहुत धन-सम्पत्ति के कारण अत्यन्त गर्वीला बहुधणसंपत्तीए गविट्रो आसि भोगविलासेसु था भोगविलासों में एव अव्यय लग्गो लगा हुआ (था) कभी भी कयावि धम्म (लग्ग) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (धम्म) 2/1 अव्यय (कुण) व 3/1 सक (त) 6/1 स (पुत्त) 1/1 धर्म नहीं ण कुणेइ करता है (था) तस्स उसका पुत्तो पुत्र अव्यय 282 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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