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________________ लब्भइ (लब्भइ) व कर्म 3/1 सक अनि पाया जाता है (ग्रहण किया जाता है) परन्तु तुम्हाणं मुहपेक्खणेण मम मेरा वहो वध भविस्सइ तया पउरा किं कहिस्संति मम मेरे मुहाओ सिरिमंताणं मुहदसणं केरिसफलयं अव्यय परन्तु (तुम्ह) 6/2 तुम्हारा [(मुह)-(पेक्खण) 3/1] मुख देखने से (अम्ह) 6/1 स (वह) 1/1 (भव) भवि 3/1 अक होगा अव्यय तब (पउर) 1/2 नगर के निवासी (किं) 1/1 स क्या (कह) भवि 3/2 सक कहेंगे (अम्ह) 6/1 स (मुह) 5/1 मुँह की तुलना में (सिरिमंत) 6/2 श्रीमान के [(मुह)-(दसण) 1/1] मुखदर्शन ने [(केरिस)-(फल)][(केरिस) वि कैसे, फल को फलय (फल) 'व' स्वार्थिक प्रत्यय 2/1] (संजाअ) भूकृ 1/1 अनि उत्पन्न किया (नायर) 1/2 नागरिक अव्यय भी (पभाअ) 7/1 प्रभात में (तुम्ह) 6/2 स तुम्हारे (मुह) 2/1 अव्यय कैसे (पास) भवि 3/2 सक देखेंगे अव्यय इस प्रकार (त) 6/1 स उसकी संजा नायरा वि पभाए तुम्हाणं मुहं मुख को कहं पासिहिरे एवं तस्स 1. कभी-कभी सकर्मक क्रिया से बने हुए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य में किया जाता है। 280 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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