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________________ 1. एव सुणिऊण राया कम्मविवागं जणस्स सयलस्स संसारगमणभीओ इच्छइ घेत्तूण पव्वज्जं 2. सद्दाविया य सिग्घं सामन्ता आगया समन्तिजणा काऊण सिरपणामं विट्ठा आसणव 232 Jain Education International पाठ-7 दसरहपव्वज्जा अव्यय (सुण) संकृ (राया) 1 / 1 (कम्मविवाग ) 2 / 1 ( जण ) 6 / 1 (सयल) 6 / 1 वि [(संसार) - (गमण ) - (भीअ) भूकृ 1 / 1 अनि ] (इच्छ) व 3 / 1 सक ( घेत्तूण) हे अि ( पव्वज्जा) 2 / 1 (सद्दाव) प्रे भूकृ 1 / 2 अव्यय अव्यय ( सामन्त ) 1 / 2 (आगय) भूकृ 1/2 अनि [(स) वि- (मंति) - ( जण) 1 / 2 ] (काऊण) संकृ अनि [(सिर) - (पणाम) 2/1] ( उवविट्ठ) भूकृ 1 / 2 अनि [ ( आसण) - (वर) 7 / 2] For Private & Personal Use Only ऐसे सुनकर राजा कर्मफल को लोगों के सब संसार भ्रमण से डरा हुआ इच्छा करता है लेने के लिए (लेने की ) प्रव्रज्या बुलाए गए ही शीघ्र सामन्त आ गए मंत्रीजनों के साथ करके सिर बैठे उत्तम आसनों पर प्रणाम प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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