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________________ झीणम्मि सया वहइ वहु॑तयम्मि सविसेसं सायरससीण छज्जइ जयम्मि पडिवन्नणिव्वहणं 30. पडिवन्नं जेण समं पुव्वणिओएण होइ जीवस्स दूरट्ठिओ IT Too न दूरे जह चंदो कुमुयसंडाणं 31. दूरट्ठिया न दूरे सज्जणचित्ताण पुव्वमिलियाणं 1. 186 (झीण) 7 / 1 वि अव्यय (वड्ड) व 3 / 1 अक ( वड्ड) वकृ 'य' स्वार्थिक 7/1 (क्रिविअ ) Jain Education International [ ( सायर) - (ससि) 6 / 2] (छज्ज) व 3 / 1 अक ( पडिवन्न) भूकृ 1 / 1 अनि (ज) 3 / 1 स अव्यय [ ( पुव्व) - ( णिओअ ) 3 / 1] (हो) व 3 / 1 अक ( जय) 7/1 जगत में [ ( पडिवन्न) भूक अनि - ( णिव्वहण ) 1 / 1 ] किया हुआ निर्वाह [ (दूर) अ = दूर - (ट्ठिय) भूक 1/2 अनि ] अव्यय अव्यय [ ( सज्जण) - (चित्त) 4 / 2] [ ( पुव्व) क्रिविअ = पूर्व में - ( मिल ) भूकृ 4/2] 'सम' के योग में तृतीया विभक्ति होती है। क्षीण होने पर सदा बढ़ता है बढ़ते हुए होने विशेष प्रकार से साथ पूर्व सम्बन्ध से होता है (जीव ) 6/1 जीव का [ (दूर) अ = दूर (ट्ठिअ ) भूक 1 / 1 अनि ] दूरस्थित अव्यय नहीं अव्यय अव्यय (चंद) 1 / 1 [ ( कुमुय ) - (संड) 6 / 2] सागर और चन्द्रमा का शोभता है For Private & Personal Use Only किया हुआ जिसके दूर फासले पर ) जैसे चन्द्रमा कमल-समूहों के दूर स्थित नहीं दूर फासले पर ) सज्जन चित्तों के लिए पूर्व में मिले हुए प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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