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________________ दुक्खा विमोएइ (दुक्ख) 5/1 (विमोअ) व 3/1 सक (एता) 1/1 सवि (अम्ह) 6/1 स (अणाहया) 1/1 दुःख से छुड़ाती हैं (छुड़ाया) यह एसा मज्झ मेरी अणाहया अनाथता 30. तओ अव्यय तब एवामहंसु इस प्रकार, (अम्ह) 1/1 स [(एवं)+(आहेसु)] एवं (अव्यय) आहेसु' (आह) भू 1/1 सक (दुक्खमा) 1/1 वि अव्यय कहा दुक्खमा असह्य निश्चय ही बार-बार पुणो पुणो वेयणा अणुभविउं अव्यय (वेयणा) 1/1 (अणुभव) संकृ अव्यय (संसार) 7/1 (अणंतअ) 7/1 वि पीड़ा अनुभव करके पादपूर्ति संसार में अनन्त (में) संसारम्मि अणंतए 31. सई अव्यय तुरन्त अव्यय जइ मुच्चिज्जा वेयणा विउला अव्यय यदि (मुच्चिज्जा) विधि कर्म 1/1 सक अनि छुटकारा पा जाऊँ (वेयणा) 5/1 पीड़ा से (विउल) 5/1 वि घोर अव्यय इससे (खंत) 1/1 वि क्षमायुक्त (दंत) 1/1 वि जितेन्द्रिय इओ खंतो दंतो 1. पूरी गाथा के अन्त में आनेवाली 'इ' का क्रियाओं में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138) 168 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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