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________________ हु चाइ त्ति वुच्चई ' 8. जा 55 जा वज्जई 2 रयणी न सा 124 पडिनियत्तई ' अहम्म कुणमाणस्स अफला जन्ति राइओ' 9. जो सहस्स सहस्साणं 1. 2. 3. 4. 5. (त) 1 / 1 सवि अव्यय (चाइ) मूलशब्द 1 / 1 वि अव्यय ( वुच्चर) व कर्म 3 / 1 सक अनि प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ (जा) 1 / 1 सवि (जा) 1 / 1 सवि Jain Education International ( वज्ज) व 3 / 1 अक ( रयणी) 1 / 1 अव्यय (ता) 1 / 1 स ( पडिनियत्त ) व 3 / 1 अक ( अहम्म) 2 / 1 (कुण ) वकृ 6 / 1 (अफल ) 1/2 वि (जा) व 3 / 2 अक ( राइ) 1 / 2 (जा) 1 / 1 स ( सहस्स) 2 / 1 वि (सहस्स) 6 / 2 वि वह ही त्यागी इस प्रकार कहा जाता है For Private & Personal Use Only जो बीतती है रात्र नहीं वह लौटती है अधर्म करते हुए की व्यर्थ किसी भी कारक में मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जाता है। (पिशल प्राकृत भाषा व्याकरण, पृष्ठ 517 ) यह नियम विशेषण पर भी लागू किया जा सकता है। जाती हैं ( होती हैं) रात्रियाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो उस दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर हो जाता है, जान्तिजन्ति (हेम प्राकृत व्याकरण 1-84 ) विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में ह्रस्व हो जाते हैं (पिशल, प्राकृत भाषा व्याकरण, पृष्ठ 182 ) कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-134 ) जो हजारों को हजारों के द्वारा 137 www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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