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________________ लिए समर्थ नहीं होते हैं। तब थके हुए परेशान हुए अत्यन्त बैचेन हुए दुःखी, क्रोधी (शृगाल) धीरे-धीरे पीछे हटते हैं, एकान्त में जाते हैं। निश्चल, स्थिर, चुप ठहरते हैं। 10. वहाँ एक कछुआ उन पापी सियारों को दीर्घकाल व्यतीत होने पर दूर गया हुआ जानकर धीरे-धीरे एक पैर को बाहर निकालता है। तत्पश्चात् वे पापी सियार देखते हैं (कि) उस कछुए के द्वारा धीरे-धीरे एक पैर बाहर निकाला हुआ (है) (यह) देखकर उनके द्वारा उत्कृष्ट गति से (चला गया), और वे जल्दी से, स्फूर्तिपूर्वक, तेजी से, आवेशपूर्वक, वेगपूर्वक (और) शीघ्रता पूर्वक, जहाँ वह कछुआ था वहाँ समीप आते हैं। समीप आकर उस कछुए के उस पैर को नाखुनों से फाड़ते हैं, दाँतों से तोड़ते हैं। उसके बाद माँस और रक्त का भोजन करते हैं, भोजन करके उस कछुए को चारों तरफ से, सब तरफ से उलटा करते हैं तब भी (उस कछुए की चमड़ी का छेदन) करने के लिए नहीं समर्थ होते हैं। उस समय दूसरी बार भी (शृगाल) बाहर निकलते हैं (दूर जाते हैं) (इसी प्रकार) तब चारों पैर (विदीर्ण किये जाते हैं) (कुछ देर बाद कछुआ) धीरे-धीरे गर्दन बाहर निकालता है। तत्पश्चात् वे पापी सियार उस कछुए के द्वारा बाहर निकाली गई गर्दन को देखते हैं। देखकर जल्दी से, स्फूर्तिपूर्वक, तेजी से, आवेशपूर्वक दाँतों से, नाखुनों से कपाल अलग करते हैं। अलग करके उस कछुए को जीवन से रहित करते हैं जीवन रहित करके माँस और रुधिर का आहार करते हैं। 11. इसी प्रकार हे आयुष्मान श्रमण! जो हमारे निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी आचार्य और उपाध्याय के समीप उपस्थित होते हुए दीक्षित हुआ (है) उसकी पाँचों इन्द्रियाँ असंयमित होती है तो वह इस ही भव में बहुत साधुओं द्वारा बहुत श्रमणियों द्वारा, श्रावकों द्वारा श्राविकाओं द्वारा अवज्ञा करने योग्य होते हैं परलोक में भी बहुत दण्ड पाते हैं और वह (संसार में) परिभ्रमण करता हैं। जैसे इन्द्रियों का गोपन (संयम) नहीं करनेवाला कछुआ (मृत्यु को प्राप्त हुआ)। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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