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पाठ - 12 ससुर के घर में रहनेवाले चार दामादों की
कथा
1. किसी ग्राम में राजा के राज्य में शान्ति स्थापित करनेवाला पुरोहित रहता था। उसके एक पुत्र और पाँच कन्याएँ थीं। उसके द्वारा चार कन्याएँ विज्ञ ब्राह्मण पुत्रों के साथ विवाह करवा दी गई। किसी समय पाँचवीं कन्या का विवाह महोत्सव प्रारम्भ हुआ। विवाह में चार दामाद साथ-साथ आये। विवाह के पूर्ण होने पर दामादों के अलावा सब सम्बन्धी अपने-अपने घर चले गये। भोजने के लोभी दामाद घर में जाने के लिए इच्छुक नहीं थे। पुरोहित ने विचार किया- (ये) दामाद सासू के अत्यन्त प्रिय हैं। इसलिए अभी ये पाँच छ: दिन ठहरे (रुके) हैं पीछे चले जायेंगे। वे भोजन-रस लोभी दामाद बाद में (भी) जाने के लिए इच्छुक नहीं हुए। आपस में उन्होंने विचार कियाससुर के घर में रहना मनुष्यों के लिए स्वर्गतुल्य (होता है)। निश्चय ही यह सूक्ति सच्ची है। इस प्रकार विचारकर एक भीत पर यह सूक्ति लिखी गई। एक बार इस सूक्ति को पढ़कर ससुर के द्वारा विचार किया गया- ये भोजनरस लोभी दामाद कभी भी नहीं जायेंगे, तब ये समझाए जाने चाहिए। इस प्रकार सोचकर उस श्लोक के चरण के नीचे तीन चरण लिखे गयेविवेकीजन 5-6 दिन ही रहते हैं, यदि दही, घी एवं गुड का लोभी एक मास रहता है, (तो) वह मनुष्य गधे के समान मानहीन ही होता है।
2. उन दामादों के द्वारा (यद्यपि) तीनों पाद पढ़े गये तब भी भोजनरस के लालची होने के कारण जाने की इच्छा नहीं की। ससुर ने भी विचार किया- ये कैसे निकाले जाने चाहिए? स्वादिष्ट भोजन में लीन ये गधे के समान मानहीन हैं, इसलिए (ये) युक्तिपूर्वक निकाले जाने चाहिए। पुरोहित अपनी पत्नी को पूछता है- (तुम) इन दामादों को भोजन के लिए क्या देती हो? उसने कहा
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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