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सो जम्महेउत्तणेण पिया जाओ। जो सहजीविओ सो एगजम्म-ट्ठाणेण भाया। जो अट्ठीण गंगामज्झम्मि खिविउं गओ सो पच्छापुण्णकरणेण पुत्तसमो जाओ। जेण पुण तं ठाणं रक्खियं, सो भत्ता।" एवं मंतिणा विवाए भग्गे, चउत्थेण वरेण कुरुचंदाभिहाणेण सा परिणीआ।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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