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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org (Bh) ॥एए॥ श्रीमात्रांजिनंनत्वा स्यादसंयुतं प्रत्मानंद विज्ञानसारतन्यते १ परोप कारप्रवणा मुखिया चैनल तुर्गुरो दशाः तेषां स्तुवाक्यामृत यांनीनः करोनिटी का स्वदित सुबोध र नास्तीदलो के यकारयोग्यः मतसंसारविधान धीरः तथाता बोधास के नोट को लाप्पा दिस् स्त्रार्थकता न नंबर शिष्टाचार रियाल नारा मंगलादिवाच्यं तचात्मस्वरूय निरूपएपटित्वात् सर्वेएवगं श्री मंगलं तथापिगंधा बुर्विषाव बोधाय शिष्यमतिविकाशा थंचपंच मंगल बीजसूतं श्रीमन्मुनि राजा दिपंचपदस्मरण रूयं मंगल प्रा विकृतं गुणीस्तवन धूनि ए[]]नमः श्रीभूर्णानंद स्वरूपास ऐंड श्रीष मग्नेन लीला लग्नमिवाखिलं सच्चिदा अंजलि क रण योगा हा दा दि कारणोत्यन्त मीम गुप्र हेदा दिन मनिक त्वयावमंगला म कंकचे विद्या सिनर्जऐं इतिस्मरण मंगलात्मकं चाद्यं पद्येक्तिगंलकारः नमुनि नापाव के नुस्तुरी गायथार्थ यो समययोगवता तथा श्रीमंत ताम६ परमात्मना दक्षाय को पयोग येता न्याय सरस्वती निरुदधरेण श्रीमछशेो विजय पाध्यायेन नमिकलं जगत् ६ पर संयोगोत्पन्ननवमीला जगतू लीला लग्नं देव कल्पना कल्पित की कामग्धुं वने वतेि, इवि सेटकं इत्यनेन तत्मनंदात लग्नाः परासवग्नान् S. M. त alf पत्र ११३ मोहनलालजी जैन ज्ञान भंडार - स -सुरत
SR No.002684
Book TitleGyansara Gyanmanjarivrutti
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay, Devvachak
AuthorRamyarenu
PublisherKailashnagar Jain Sangh Surat
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size22 MB
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