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________________ प्रकाशकीय नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि के पट्टधर आचार्य जिनवल्लभसूरि अपने समय के उद्भट विद्वान् व रचनाकार हुए हैं । प्राकृत और संस्कृत भाषाओं पर उनका समान अधिकार था । आपके द्वारा रचित विशाल साहित्य का जो अंश उपलब्ध है उसका बहुत कम भाग ही प्रकाशित हो पाया है । साहित्य वाचस्पति म० विनयसागरजी ने बारहवीं शताब्दि के इस मूर्धन्य विद्वान् पर गहन शोध कार्य किया है जिसका एक अंश वल्लभ-भारती नाम से पूर्व में प्रकाशित हो चुका है। शेष कार्य संयोगवश अप्रकाशित ही रह गया था। हमें प्रसन्नता है कि आगम-मर्मज्ञ मुनिराज श्री जम्बूविजयजी महाराज की सद्प्रेरणा व उत्साहवर्धन के फलस्वरूप आज हम जैन वाङ्मय के इस बिखरे अंश को जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावली नाम से संयुक्त प्रकाशन के रूप में सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है यह शोधार्थियों के लिए नए आयाम प्रस्तुत करेगा । ट्रस्टी, श्री सिद्धि भुवन मनोहर जैन ट्रस्ट पालड़ी, अहमदाबाद (गुजरात) ट्रस्टी, श्री जैन आत्मानंद सभा भावनगर (गुजरात ) Jain Education International देवेन्द्र राज मेहता संस्थापक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर मंजुल जैन मैनेजिंग ट्रस्टी एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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