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________________ सन्तान सम्बन्धी प्रश्न सन्तान की प्राप्ति होगी या नहीं, इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, जिस तिथि को पृच्छक आया हो उस तिथि-संख्या को चार से गुणा कर एक जोड़ देना। इस योगफल में दिन संख्या और योग संख्या-रविवार, सोमवार आदि; विष्कम्भ, प्रीति आदि योग संख्या-उस दिन जो वार और योग हो उसकी संख्या जोड़ देना। इस योगफल में दो से भाग देना, तब जो लब्धि हो उसको तीन से गुणा कर चार से भाग देना । यदि भाग करते समय एक शेष रहे तो विलम्ब से सन्तान की सम्भावना, दो शेष रहने पर सन्तान का अभाव और शून्य शेष रहने पर सन्तान को शीघ्र प्राप्ति होती है। दिन संख्या-( रविवार आदि के क्रम से ) तीन से गुणा कर उसमें तिथिसंख्या जोड़ देना और योगफल में दो का भाग देने से एक शेष रहने पर सन्तान की प्राप्ति सम्भव और शून्य शेष रहने पर सन्तान प्राप्ति का अभाव समझना चाहिए। प्रश्नलग्न के अनुसार सन्तान सम्बन्धी प्रश्नों में लग्नेश और पंचमेश तथा लग्न और पंचम के सम्बन्ध का विचार करना चाहिए । लग्नेश और पंचमेश परस्पर में एकदूसरे को देखते हों तो सन्तान सात और परस्पर में दृष्टि न हो तो सन्तान का अभाव समझना चाहिए। इस प्रसंग में यह ज्ञातव्य है कि लग्न और पंचम पर लग्नेश और पंचमेश की दृष्टि का होना तथा शुभग्रहों के साथ इत्थशाल योग का रहना सन्तानप्राप्ति के लिए आवश्यक है । दृष्टि न होने पर सन्तानाभाव समझना चाहिए। प्रश्नलग्न, जन्मलग्न और चन्द्रमा से पंचम स्थान में सिंह, वृष, वृश्चिक और कन्या राशियाँ स्थित हों तो प्रश्नकर्ता को विलम्ब से सन्तान-लाभ होता है। यदि पंचम भाव में पापग्रह हौं अथवा पापदृष्ट ग्रह हों तो भी विलम्ब से सन्तान प्राप्ति होती है। यदि प्रश्न के समय अष्टम भाव में सूर्य और शनि सिंह, मकर या कुम्भ राशि में स्थित हों तो सन्तान का अभाव समझना चाहिए। चन्द्र और बुध अष्टम स्थान में स्थित हों तो विलम्ब से एक सन्तान की प्राप्ति होती है। चन्द्रमा के बलवान् होने से कन्या सन्तान होती है। यदि अष्टम में केवल बुध स्थित हो तो सन्तान का अभाव रहता है। शुक्र और गुरु अष्टम स्थान में स्थित हों तो सन्तान उत्पन्न होने के अनन्तर उसकी मृत्यु हो जाती है । मंगल अष्टम में हो तो गर्भपात हो जाता है। प्रश्न लश्न में अष्टमेश अष्टम भाव में स्थित हों तो पृच्छक को सन्तान-लाभ नहीं होता। शुक्र और सूर्य अष्टम स्थान में स्थित हों तथा पापग्रह द्वितीय, द्वादश और अष्टम स्थान में हों तो सन्तान-लाभ नहीं होता तथा पृच्छक को कष्ट भी होता है। यदि द्वादश भाव का स्वामी केन्द्र में हो और उसे शुभग्रह देखते हों तो एक दीर्घजीवी बालक उत्पन्न होता है। पंचमेश अथवा लग्नेश मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुम्भ राशियों में स्थित हों तो एक पुत्र की प्राप्ति होती है। यदि उक्त ग्रह वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियों में स्थित हों तो कन्या की प्राप्ति होती है। लग्न से विषम स्थान में शनि स्थित हो तो पुत्रलाभ और वही सम पंचम अध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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