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दिशा में और शुक्लपक्ष की नवमी से शुक्लपक्ष की चतुर्दशी पर्यन्त दक्षिण दिशा में बनाया हुआ घर का द्वार शुभ नहीं होता। द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और द्वादशी में बनाया हुआ द्वार शुभ होता है । दरवाजे का निर्माण शुक्लपक्ष में करने से शुभफल और कृष्णपक्ष में करने से अनिष्टफल होता है। कृष्णपक्ष में द्वार का निर्माण करने से चोरी होने की आशंका सर्वदा बनी रहती है।
__जिस नक्षत्र में सूर्य स्थित हो उससे चार नक्षत्र सिर-उत्तमांग में स्थापित करे। इन नक्षत्रों में घर का दरवाजा लगाया जाये तो लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । इसके पश्चात् आगे के आठ नक्षत्र चारों कोनों में स्थापित करना चाहिए । इन नक्षत्रों में दरवाज़ा लगाने से घर नष्ट हो जाता है । इसके पश्चात् आगे के आठ नक्षत्र शाखा–बाजुओं में स्थापित करना चाहिए । इन नक्षत्रों में घर का दरवाजा लगाने से सुख, सम्पत्ति और वैभव की प्राप्ति होती है । इसके आगे के तीन नक्षत्र देहली में और उससे आगे के चार नक्षत्र मध्य में स्थापित करने चाहिए। देहलीवाले नक्षत्रों में दरवाजा लगाने से स्वामी का मरण और मध्यवाले नक्षत्रों में दरवाज़ा लगाने से सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।
द्वारचक्र
सिर
कोण
बाजू
देहली
।
मध्य
लक्ष्मी
उजाड़
सौख्य
स्वामिमरण सौख्य-सम्पत्ति
गृहारम्भ में निषिद्धकाल
___ गृहारम्भकाल में यदि सूर्य निर्बल, अस्त या नीच स्थान में हो तो घर के स्वामी का मरण; यदि चन्द्रमा अस्त या नीच स्थान में हो अथवा निर्बल हो तो उसकी स्त्री का मरण होता है। यदि बृहस्पति निर्बल, अस्त या नीच स्थान में हो तो सुख का नाश, यदि शुक्र निर्बल, अस्त या नीच स्थान में हो तो धन का नाश होता है । गृहारम्भकाल में चन्द्रमा का नक्षत्र या वास्तु का नक्षत्र घर के आगे पड़ता हो तो उस घर में स्वामी की स्थिति नहीं होती और पीछे पड़ता हो तो उस घर में चोरी होती है । जिस नक्षत्र में चन्द्रमा स्थित हो, वह चन्द्र नक्षत्र कहलाता है । गृह की आयु
जिस गृह के निर्माण के समय बृहस्पति लग्न में, सूर्य छठे स्थान में, बुध सातवें स्थान में, शुक्र चतुर्थ स्थान में और शनि तीसरे स्थान में स्थित हो उस घर की आयु
मारतीय ज्योतिष
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