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________________ रिया रोग छूट जाता है तथा निर्बल मनुष्य रोगों के आक्रमण से अपनी रक्षा कर सकता है। इस शास्त्र की सबसे बड़ी उपयोगिता यही है कि यह समस्त मानव-जीवन के प्रत्यक्ष और परोक्ष रहस्यों का विवेचन करता है और प्रतीकों द्वारा समस्त जीवन को प्रत्यक्ष रूप में उस प्रकार प्रकट करता है जिस प्रकार दीपक अन्धकार में रखी हुई वस्तु को दिखलाता है । मानव का व्यावहारिक कोई भी कार्य इस शास्त्र के ज्ञान बिना नहीं चल सकता है । भारतीय ज्योतिष का कालवर्गीकरण किसी भी शास्त्र या विज्ञान का सम्यक् अध्ययन करने के लिए उसका इतिहास जानना आवश्यक होता है; क्योंकि उस शास्त्र के इतिहास द्वारा तद्विषयक रहस्य समझ में आ जाता है । ज्योतिषशास्त्र सृष्टि और प्रकृति के रहस्य को व्यक्त करनेवाला है । मानव प्रकृति को पाठशाला में सदा से इस शास्त्र का अध्ययन करता चला आ रहा है, अतः इस शास्त्र के उद्भव स्थान और काल का निश्चित रूप से पता लगाना ज़रा टेढ़ी खीर है । चाहे अन्य ज्ञानों की निर्झरिणी के आदि स्रोत का पता लगाना सम्भव हो, पर प्रकृति के अनन्यतम अंग इस शास्त्र का छोर-पैड़ ढूँढ़ना मानव शक्ति से परे की बात है । अथवा दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जिस दिन से मानव ने होश सँभाला उसी दिन से उसने ज्योतिष के आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करना शुरू कर दिया । भले ही वह इन तत्त्वों को अभिव्यक्त करने की योग्यता के अभाव में दूसरों को न बता सका हो, पर उसका जीवन निर्वाह इन नहीं सकता था; तत्त्वों के बिना हो फलतः मानव जीवन के विकास के साथ-साथ ज्योतिष का भी विकास हुआ । कालवर्गीकरण की दृष्टि से इस शास्त्र के इतिहास को निम्न युगों में विभक्त किया जा सकता है- अन्धकारकाल — ई. पू. १०००० वर्ष पहले का समय उदयकाल - ई. पू. १०००० ई. पू. ५०० तक आदिकाल -- ई. पू. ४९९ - ई. ५०० तक पूर्व मध्यकाल - ई. ५०१ - ई. १००० तक उत्तरमध्यकाल - ई. १००१ - ई. १६०० तक आधुनिककाल - ई. १६०१ - ई. १९४६ तक B उपर्युक्त कालों का वर्गीकरण ज्योतिषशास्त्र के गया है । यों तो भारतीय संस्कृत के इतिहास को भी जाता है, लेकिन यहाँ पर ज्योतिष को अनादिनिधन मानते हुए भी अभिव्यंजन प्रणाली विकास के आधार पर किया उपर्युक्त वर्गों में विभक्त किया के विकास पर ही मुख्य दृष्टि रखी गयी है । ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only भारतीय ज्योतिष www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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