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हद्दाबल-सूर्य मंगल के हद्दा में है और सूर्य का मंगल शत्रु है, अतः शत्रु के हद्दा में होने के कारण सूर्य का हद्दाबल ३३४५ हुआ । चन्द्रमा गुरु के हद्दा में है और गुरु चन्द्रमा का शत्रु है, अतः शत्रु के हद्दा में होने के कारण चन्द्रमा का हद्दाबल ३।४५ हुआ। मंगल बुध के हद्दा में है और बुध मंगल का शत्रु है अतः भौम का हद्दाबल ३।४५ हुआ । इसी प्रकार बुध का हद्दाबल ३।४५, गुरु का ३।४५, शुक्र का ३।४५ और शनि का ३।४५ हुआ।
द्रेष्काण-द्वितीय अध्याय में बतायी गयी विधि से द्रेष्काण लाकर तब विचार करना चाहिए । यहाँ सूर्य भौम के द्रेष्काण में है अतः उसका २।३० बल हुआ । चन्द्रमा शनि के द्रेष्काण में है अतः २।३० बल हुआ। मंगल गुरु के द्रेष्काण में है अतः समगृही द्रेष्काण होने के कारण ५० बल हुआ । बुध मंगल के द्रेष्काण में है अतः उसका २।३० बल हुआ । इसी प्रकार गुरु का द्रेष्काणबल ५।०, शुक्र का १०० और शनि का ७५३० है।
___ नवमांश बल-द्वितीय अध्याय में बतायी विधि से सूर्य अपने ही नवमांश में है अतः उसका नवमांशबल ५१० हुआ । चन्द्रमा शनि के नवमांश में है और शनि चन्द्रमा का शत्रु है, अतः शत्रुगृही नवमांश होने से इसका नवमांशबल १३१५ हुआ । मंगल गुरु के नवमांश में है और गुरु मंगल का सम है अतः इसका बल २।३० हुआ । इसी प्रकार बुध का नवमांश बल २।३०, गुरु का २१३०, शुक्र का १।१५ और शनि का ११५ हुआ। बलीग्रह का निर्णय
जिस ग्रह का विशोपक बल ११ से २० अंश तक हो वह पूर्णबली, जिसका ६ से १० अंश तक हो वह मध्यबली, जिसका १ से ५ अंश तक हो वह अल्पकली और जिसका विंशोपक बल शून्य हो वह निर्बल कहलाता है। कहीं-कहीं ५ अंश से कम विंशोपकवाले ग्रह को ही निर्बल माना है। स्वयं का अनुभव भी यही है कि ५ अंश से कम विंशोपकवाला ग्रह निर्बल होता है ।
पंचाधिकारी
जन्मलग्नेश, वर्षलग्नेश, मुन्थाधिप, त्रिराशिपति और दिन में वर्षप्रवेश हो तो सूर्यराशिपति तथा रात्रि में वर्षप्रवेश हो तो चन्द्रराशिपति ये पाँच ग्रह वर्षपत्रिका में विशेषाधिकारी माने जाते हैं । त्रिराशिपति विचार
नीचे चक्र में से दिन में वर्षप्रवेश हो तो वर्ष लग्न की राशि के अनुसार दिवात्रिराशिपति और रात्रि में वर्षप्रवेश हो तो रात्रि का त्रिराशिपति ग्रहण करना चाहिए ।
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