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________________ है। दायेश से ६।८।१२वें भाव में पापग्रह से युत या दृष्ट हो तो पीड़ा, सन्ताप, कष्ट, व्याधि, धननाश, कार्यबाधा आदि बातें होती हैं। मंगल में चन्द्र-चन्द्र उच्च, मूलत्रिकोणी, स्वराशि या शुभगह युत हो तो इस दशाकाल में राज्यलाभ, मन्त्रीपद, सम्मान, उत्सवों का होना, विवाह, स्त्री-पुत्रों को सुख, माता-पिता से सुख, मनोरथसिद्धि आदि फल मिलते हैं। नीच, शत्रु राशि या अस्तंगत होकर दायेश से ६।८।१२वें स्थान में हो तो स्त्री-पुत्र को हानि, कष्ट, पशु, धान्य का नाश, चोरभय प्रभृति फल होते हैं। द्वितीयेश या सप्तमेश चन्द्रमा हो तो अकालमरण होता है। राहु की महादशा में सभी ग्रहों को अन्तर्दशा का फल राहु में राहु-कर्क, वृष, वृश्चिक, कन्या और धनराशि का राहु हो तो उसकी दशा में सम्मान, शासनलाभ, व्यापार में लाभ होता है। राहु ३।६।११वें भाव में हो, शुभग्रह से युत या दृष्ट हो, उच्च का हो तो इस दशा में राज्यशासन में उच्चपद, उत्साह, कल्याण एवं पुत्रलाभ होता है । ६।८।१२वें भाव में पापग्रह से युत या दृष्ट हो तो कष्ट, हानि, बन्धुओं का वियोग, झंझटें, चिन्ताएँ आदि फल होते हैं। ७वें भाव में हो तो रोग होते हैं। राहु में गुरु-१।४।५।७।९।१०वें स्थान में स्वगृही, मूलत्रिकोण या उच्च का हो तो इस दशाकाल में शत्रुनाश, पूजा, सम्मान, धनलाभ, सवारी, मोटर, पुत्र आदि की प्राप्ति होती है। नीच, अस्तंगत या शत्रुराशि में होकर ६।८।१२वें भाव में हो तो धनहानि, कष्ट, विघ्न-बाधाओं का बाहुल्य, स्त्री-पुत्रों की पीड़ा आदि फल होते हैं। राहु में शनि-शनि १।४।५।७।९।१०।११वें भाव में उच्च या मूलत्रिकोणी हो तो उसकी दशा में उत्सव, लाभ, सम्मान, बड़े कार्य, धर्मशाला, तालाब का निर्माण आदि बातें होती हैं। नीच, शत्रुक्षेत्री होकर ६।८।१२वें भाव में हो तो स्त्री-पुत्र का मरण, लड़ाई और नाना कष्टों की प्राप्ति होती है। द्वितीयेश या सप्तमेश शनि हो तो अकालमरण होता है। राहु में बुध-राहु १।४।५।७।९।१०वें स्थान में स्वक्षेत्री, उच्च का, बलवान् हो तो इस दशाकाल में कल्याण, व्यापार से धनप्राप्ति, विद्याप्राप्ति, यशलाभ और विवाहोसव आदि होते हैं । ६।८।१२वें स्थान में शनैश्चर की राशि से युत या दृष्ट हो या दायेश से ६।८।१२वें स्थान में हो तो हानि, कलह, संकट, राजकोप, पुत्र का वियोग होता है। द्वितीयेश और सप्तमेश बुध हो तो अकालमरण होता है। राहु में केतु-इस दशाकाल में वातज्वर, भ्रमण और दुख होता है । यदि शुभग्रह से केतु युत हो तो धन की प्राप्ति, सम्मान, भूमिलाभ और सुख होता है । १।४। ५।७।९।१०।८।१२वें स्थान में केतु हो तो उसकी दशा महान् कष्ट देनेवाली होती है। राहु में शुक्र-१।४।५।७।९।१०।११वें स्थान में शुक्र हो तो उसकी दशा में भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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