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________________ राशिगत ग्रहों की संख्या अधिक हो तो जातक अध्यापक, प्रोफेसर, मास्टर, किरानी, अढ़तिया आदि का पेशा करता है। राशि और ग्रहों के तत्त्व प्रथम भाव के विचार में लिखे गये हैं। उनके सनुसार निम्न प्रकार विचार किया जाता है (१) बली ग्रह, (२) बली ग्रह की राशि, (३) लग्न और (४) दशम राशि इन चारों में यदि अग्नितत्त्व की विशेषता हो तो बुद्धि और मानसिक क्रियाओं में चमत्कारपूर्ण कार्य; पृथ्वीतत्व की विशेषता हो तो शारीरिक श्रमसाध्य कार्य एवं जलतत्त्व की विशेषता हो तो जातक का व्यवसाय बदला करता है । द्वादश भावों में द्वादशेश का फल ___ व्ययेश लग्न में हो तो जातक विशेष भ्रमण करनेवाला, मधुरभाषी, धन खर्च करनेवाला, रूपवान्, कुसंगति में रहनेवाला, झगड़ालू, नाना प्रकार के उपद्रवों को करनेवाला और पुंसत्व शक्ति से हीन या अल्प पुंसत्व शक्तिवाला; द्वितीय भाव में हो तो कृपण, कठोर, कटुभाषी, रोगी, निर्धन और दुखो; तीसरे भाव में हो तो मातृहीन या अल्प भाइयोंवाला, प्रवासी, रोगी, अल्पधनी, व्यवसायी, परिश्रमी और वाचाल; चौथे भाव में हो तो रोगी, श्रेष्ठ कार्यरत, पुत्र से कष्ट प्राप्त करनेवाला, दुखी, आर्थिक संकट से परिपूर्ण और जीवन में प्रायः असफल रहनेवाला; पांचवें भाव में पापग्रह व्ययेश हो तो पुत्रहीन, पुत्रसुख से वंचित, दुखी तथा शुभग्रह व्ययेश हो तो पुत्रसुख से अन्वित, सत्कार्यरत और अल्पसन्तति, सुख को प्राप्त करनेवाला; छठे भाव में पापग्रह व्ययेश हो तो कृपण, दुष्ट, नीचकार्यरत, अल्पायु तथा शुभग्रह व्ययेश हो तो मध्यमायु, लाभान्वित, साधारणतया सुखी और अन्तिम जीवन में कष्ट प्राप्त करनेवाला; सातवें भाव में हो तो दुश्चरित्र, चतुर, अविवेकी, परस्त्रीरत तथा क्रूरग्रह सप्तमेश हो तो अपनी स्त्री से मृत्यु प्राप्त करनेवाला या किसी वेश्या के जाल में फंसकर मृत्यु को प्राप्त करनेवाला और व्यसनी; आठवें भाव में हो तो पाखण्डी, धूर्त, धनरहित और नीचकार्यरत; नौवें भाव में हो तो तीर्थयात्रा करनेवाला, चंचल, आलसी, दानी, धनार्जन करनेवाला, और मतिहीन; दसवें भाव में हो तो परस्त्री से पराङ्मुख, सुन्दर सन्तानवाला, पवित्र, धनिक, जीवन को सफलतापूर्वक व्यतीत करनेवाला और माता के साथ द्वेष करनेवाला; ग्यारहवें भाव में हो तो दीर्घजीवी, प्रमुख, दानी, सत्यवादी, सुकुमार, प्रसिद्ध, श्रेष्ठकार्यरत, मान्य, सेवावृत्ति के मर्म को जाननेवाला और परिश्रमी एवं बारहवें भाव में हो तो ऐश्वर्यवान्, ग्रामीण, कृपण, पशु-सम्पत्तिवाला, ज़मींदार या मामूली जागीर का स्वामी और स्वकार्यरत होता है। द्वादश लग्नों का फल मेष लग्न में जन्म लेनेवाला जातक दुर्बल, अभिमानी, अधिक बोलनेवाला, बुद्धिमान्, तेज स्वभाववाला, रजोगुणी, चंचल, स्त्रियों से द्वेष रखनेवाला, धर्मात्मा, कम तृतीयाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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