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________________ लग्न या चन्द्रमा से दशमेश शुक्र के नवांश में हो तो सुवर्ण, मणि, गज, अश्व, गौ, गुड़, चावल, नमक आदि के व्यापार से लाभ होता है । लग्न या चन्द्रमा से दशमेश, शनि के नवांश में हो तो निन्दित मार्ग से आजीविका सम्पन्न होती है । चन्द्रमा से दशम में मंगल बुध से युक्त हो तो शास्त्रोपजीवी, गुरु से युक्त हो तो नीचों का स्वामी, शुक्र से युक्त हो तो विदेश से व्यापार करनेवाला, शनि से युक्त हो तो साहसी एवं निःसन्तान होता है । चन्द्रमा से दशम भाव में बुध, से युक्त हो तो पुस्तक-लेखक, बृहस्पति, दृढ़ संकल्पी एवं कलाकार होता है । शुक्र हों तो विद्या, स्त्री एवं धन से युक्त, शनि शुक्र से युक्त हो तो समृद्ध, शनि से युक्त हो तो दशमेश का द्वादश भावों में फल दशमेश लग्न में हो तो जातक पिता से स्नेह करनेवाला, बाल्यावस्था में दुखी, माता से द्वेष करनेवाला, अन्तिम अवस्था में सुखी, धनिक, पुत्रवान् और देशमान्य; द्वितीय स्थान में हो तो अल्पसुखी, जागीरदार, माता से द्वेष करनेवाला और परिश्रम से जी चुरानेवाला; तृतीय स्थान में हो तो कुटुम्बियों से विरोध करनेवाला, मामा के द्वारा सहायता प्राप्त करनेवाला और प्रत्येक कार्य में असफलता प्राप्त करनेवाला; चौथे स्थान में हो तो सुखी, कुटुम्बियों की सेवा करनेवाला, राजमान्य, शासन में भाग लेनेवाला, पंच प्रमुख, सबका प्रिय और ऐश्वर्यवान्; पाँचवें भाव में हो तो शुभ कार्य करनेवाला, पाखण्डी, राजा से धन प्राप्त करनेवाला, विलासी, माता को सर्व प्रकार से सुख देनेवाला और सुखी; छठे भाव में दशमेश पापग्रह होकर स्थित हो तो बाल्यावस्था में दुखी, मध्यावस्था में सुखी, माता से द्वेष करनेवाला; भाग्यरहित, सामान्य धनिक और शत्रु द्वारा हानि प्राप्त करनेवाला; सातवें में हो तो सुन्दर, रूपवती और पुत्रवाली रमणी का भर्ता, कौटुम्बिक सुख से परिपूर्ण, भोगी, ससुराल से सुख प्राप्त करनेवाला और सुखी; आठवें भाव में हो तो क्रूर, तस्कर, पाखण्डी, धूर्त, मिथ्याभाषी, अल्पायु, माता को सन्ताप देनेवाला, कष्टों से दुखित और नीचकर्मरत; नौवें भाव में हो तो बन्धु बान्धव समन्वित, मित्रों के सुख से परिपूर्ण, अच्छे स्वभाववाला, धर्मात्मा और लोकप्रिय; दसवें भाव में हो तो पिता को सुख देनेवाला, माता के कुटुम्ब को प्रसन्न रखनेवाला, मातुल की सेवा करनेवाला, राजमान्य, मुखिया, धनी, चतुर, लेखक और कार्यकुशल, ग्यारहवें भाव में हो तो माता-पिता को सम्मानित करनेवाला, धनिक, उद्योगी और व्यापार में अत्यन्त निपुण एवं बारहवें भाव में हो तो राजकार्य में प्रेम रखनेवाला, मान्य, शासन के कार्यों में सुधार करनेवाला, स्वाभिमानी और प्रवासी होता है । ३७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only भारतीय ज्योतिष www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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