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________________ ४-नवम भाव एवं बृहस्पति से भाग्य प्रभाव, गुरु, धर्म, तप और शुभ का विचार किया जाता है। नवमेश और बृहस्पति शुभ वर्ग में हों, भाग्य भाव शुभग्रह से युक्त हो तो जातक भाग्यवान् होता है । ५-यदि पापग्रह, नीचराशिस्थ ग्रह वा अस्तग्रह नवमभाव में हों तो जातक यश, धर्म और धन से हीन रहता है। पापग्रह भी यदि उच्च स्थान में मित्रगृह में होकर नवम में स्थित हो तो मनुष्य निरन्तर भाग्यवान् होता है। ६-नवम भाव यदि अपने स्वामी या शुभग्रह से युत अथवा दृष्ट हो तो जातक भाग्यशाली होता है । भाग्येश जिस राशि में हो उसका स्वामी भी भाग्यकारक होता है। नवमेश ग्रह भाग्य का परिचायक और भाग्य से पंचमेश अर्थात् लग्नेश भाग्य का बोधक होता है । यदि ये सभी ग्रह अपने-अपने उच्च या सुगृह के राशि में हो तो जातक सदा भाग्यशाली रहता है। ७-यदि चार बलो ग्रह अपने उच्च तथा नवांश में स्थित होकर भाग्यस्थान में हों तो जातक भाग्यशाली होता है और उसे सभी प्रकार की सम्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं। ८-भाग्यस्थान-नवम भाव अपने स्वामी या शुभग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक भाग्यवान् होता है । ९-नवम भावगत गुरु यदि सूर्य के द्वारा दृष्ट हो तो जातक राजा, मंगल द्वारा दृष्ट हो तो मंत्री, बुध द्वारा दृष्ट हो तो धनी, शुक्र द्वारा दृष्ट हो तो मोटर आदि सम्पत्तियों से युक्त और चन्द्रमा द्वारा दृष्ट हो तो सुखी होता है । १०-नवम भाव में स्थित गुरु को चन्द्रमा और सूर्य देखते हों तो जातक पण्डित एवं धनी होता है। मंगल और सूर्य देखते हों तो वाहन, रत्न आदि सम्पत्ति से युक्त होता है । सूर्य और बुध देखते हों तो धनिक एवं सूर्य और शुक्र द्वारा दृष्ट होने पर धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। ११-नवम भाव में सूर्य एवं बुध स्थित हों तो जातक दुखी, रोगी, पीड़ित; चन्द्रमा और बुध हो तो जातक चतुर, शास्त्रज्ञ; चन्द्रमा और गुरु हों तो जातक धीर बुद्धि, श्रीमान्, भाग्यशाली; चन्द्रमा और शुक्र हों तो साधारण भाग्यवान् एवं चन्द्रमा और शनि हों तो दुखी और निर्धन होता है। नवम भाव में मंगल और बुध हो तो जातक भोगी, सुखी एवं सम्पन्न; मंगल और बृहस्पति हों तो धनवान्, पूज्य; मंगल और शुक्र हों तो दो स्त्रियों का पति, परदेशवासी, भाग्यशाली; मंगल और शनि हों तो परस्त्रीगामी, धनिक एवं नीच विचारयुक्त तथा बुध और गुरु हों तो चतुर बुद्धि, विद्वान्, धनी और ज्ञानी होता है। नवम भाव में बुध और शुक्र हों तो जातक बुद्धिमान्, रतिप्रिय एवं पण्डित; बुध-शनि हों तो रोगी, धनवान् एवं मिथ्यावादी; बृहस्पति-शुक्र हों तो तृतीयाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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