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२०-मंगल पांचवें, सूर्य सातवें और शनि नीच राशि का हो तो ७० वर्ष की आयु होती है।
२१–अष्टम स्थान को जो बलवान् ग्रह देखता है उसके धातु के प्रकोप से मृत्यु होती है । अर्थात् सूर्य देखता हो तो अग्नि से, चन्द्रमा देखता हो तो जल से, मंगल देखता हो तो आयुध से, बुध देखता हो तो ज्वर से, बृहस्पति देखता हो तो कफ से, शुक्र देखता हो तो क्षुधा से और शनि देखता हो तो तृषा से रोग उत्पन्न होकर मृत्यु होती है। लग्न से अष्टम स्थान का स्वामी लग्न में हो तो वह लग्न राशि जिस अंग में ( काल पुरुष के ) हो उस अंग में उत्पन्न रोग से मरण होता है। अष्टमभाव का नवांश चर राशि में हो तो विदेश, स्थिर राशि में हो तो गृह में, एवं द्विस्वभाव राशि में स्थित हो तो मार्ग में मृत्यु होती है । यदि बलो सूर्यादि ग्रहों में से अष्टमभाव दृष्ट या युक्त न हो तो शून्य गृह में मृत्यु होती है ।
२२-अष्टम में पापग्रह युक्त हो तो कष्ट से मरण और शुभग्रह युक्त हो तो सुखपूर्वक मृत्यु होती है।
२३-क्षीण चन्द्रमा अष्टमस्थ हो और उसे बलवान् शनि देखता हो तो गुदारोग अथवा नेत्ररोग की पीड़ा से मृत्यु होती है ।
२४-लग्न से अष्टम या त्रिकोणस्थ सूर्य, शनि, चन्द्र और मंगल हो तो शूल, वज्र या दीवाल से टकराकर मृत्यु होती है। इस योग द्वारा मोटर दुर्घटना का भी परिज्ञान किया जा सकता है।
२५–चन्द्रमा लग्न में हो, सूर्य निर्बल अष्टमभाव में स्थित हो, लग्न से द्वादश गुरु हो, सुखभाव में पापग्रह हो तो जातक की मृत्यु दुर्घटना से होती है ।
२६-दशम भाव का स्वामी नवांशपति शनि से युक्त हो, ६।८।१२ भाव में स्थित हो तो विष भक्षण से मृत्यु होती है। राहु या केतु से युक्त हो तो गले में रस्सी बाँधकर-फाँसी लगाकर मृत्यु होती है। मंगल, राहु और शनि से युक्त हो तो आग में जलने या जल में डूबने से मृत्यु होती है।
२७-चन्द्रमा या गुरु जलचर राशि में होकर अष्टम में स्थित हो और पापग्रह द्वारा दृष्ट हो तो क्षय रोग द्वारा मृत्यु होती है।
२८-मृत्युस्थान में राहु हो, उसे पापग्रह देखता हो तो सर्प-दंशन से मृत्यु होती है।
२९-लग्न में शनि, सप्तम में राहु, कन्या में शुक्र और सप्तम में क्षीण चन्द्रमा हो तो शस्त्रघात से मृत्यु होती है । यहाँ मृत्युसूचक योग दिये जाते हैं--
पुतोवाध्याय
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