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और अष्टमेश के मध्य में चन्द्र हो, व्यय भाव में गुरु हो तो २७ या ३० की आयु होती है ।
५ - क्षीण चन्द्रमा हो, अष्टमेश पापयुक्त केन्द्र या अष्टम में हो; लग्न पापयुक्त निर्बल हो तो ३२ वर्ष की आयु होती है ।
६–६।८।१२वें भावों में पापग्रह हों, लग्नेश निर्बल हो तथा शुभग्रहों से युत और दृष्ट न हो तो जातक अल्पायु होता है ।
७- सभी पापग्रह ३।६।९।१२ भावों में हों तो अल्पायु, लग्नेश और अष्टमेश ६ठे या आठवें भाव में हों तो अल्पायु होता है ।
८ --- द्वितीयेश नवम भाव में, शनि सातवें और गुरु, शुक्र ग्यारहवें भाव में हों तो अल्पायु योग होता है ।
९ - लग्नेश निर्बल हो तथा सभी पापग्रह १/४ / ५ / ७ / ९ | १० स्थानों में हों और शुभग्रहों की दृष्टि नहीं हो तो अल्पायु योग होता है ।
१० - शुक्र, गुरु लग्न में हों और पंचम में मंगल पापग्रह से युत हो तथा सूर्य सहित लग्नेश लग्न में हो तो जातक अल्पायु होता है ।
मध्यमायु योग
१ - सभी पापग्रह २५|८|११ वें स्थान में हों या ३१४ स्थानों में हों तो मध्यमायु योग होता है ।
२ – लग्नेश निर्बल हो, गुरु ११४१७।१०।५।९ स्थानों में हो और पापग्रह ६।८ १२ वें भाव में स्थित हों तो मध्यमायु योग होता है ।
३ - सभी शुभग्रह १।४।५।७।९।१० स्थानों हों, शनि ६।८ स्थानों में हो और पापग्रह बलवान् होकर ७।८ स्थानों में हों तो जातक मध्यमायु होता है ।
४–१।४।५।७।९।१० स्थानों में शुभ और पाप दोनों ही प्रकार के मिश्रित ग्रह हों तो मध्यमायु योग होता है ।
५ -- दिन में जन्म हो और चन्द्रमा से आठवें स्थान में पापग्रह हों तो मध्यमायु योग होता है ।
मृत्यु का निर्णय करने के लिए मारक का ज्ञान कर लेना आवश्यक है । ज्योतिषशास्त्र में लग्नेश, षष्ठेश, अष्टमेश, गुरु और शनि इनके सम्बन्ध से मारकेश का विचार किया गया है अष्टमेश बली होकर ३।४।६।१०।१२ स्थानों में हो तो मारक होता है । लग्नेश से अष्टमेश बलवान् हो तो अष्टमेश की अन्तर्दशा मारक होती है । शनि षष्ठेश और अष्टमेश होकर लग्नेश को देखता हो तो लग्नेश भी मारक हो जाता है । अष्टमेश सप्तम भाव में बैठकर लग्न को देखता हो तो पापग्रह की दशाअन्तर्दशा में वह मारक होता है । मंगल की दशा में शनि तथा शनि की दशा में मंगल
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भारतीय ज्योतिष
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