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१९-गोचर से गुरु २।५।७।९।११ स्थान में होने पर विवाह का योग आता है।
२०-सप्तमेश, पंचमेश और एकादशेश की दशा-अन्तर्दशा में विवाह योग आता है।
२१-सप्तमस्थ बलिष्ठ ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में विवाह होता है ।
२२-विवाह किस दिशा में होगा इसका विचार शुक्र से सप्तमस्थान का स्वामी जिस दिशा का अधिपति होता है, उसी दिशा में विवाह करना चाहिए ।
२३-यदि पापग्रह सप्तम और द्वितीय स्थान में हो तो विवाह विलम्ब से होता है। अथवा विवाह हो जाने पर भी पत्नी वियोग होता है। खीमृत्यु विचार
१-कोई पापग्रह सप्तम स्थान में हो, पंचमेश सप्तम स्थान में हो; अष्टमेश सप्तम स्थान में हो, गुरु सप्तम स्थान में हो एवं पापग्रह से युत शुक्र सप्तम में हो तो जातक की स्त्री का मरण उसकी जीवित अवस्था में होता है ।
२-स्त्री के जन्मनक्षत्र से पुरुष के जन्मनक्षत्र तक तथा पुरुष के जन्मनक्षत्र से स्त्री के जन्मनक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आवे उसमें अलग-अलग ७ से गुणा कर २८ का भाग देने से यदि प्रथम संख्या में अधिक शेष रहे तो स्त्री की मृत्यु पहले और द्वितीय संख्या में अधिक शेष रहे तो पुरुष की मृत्यु पहले होती है।
३-शुक्र के नवांश में या लग्न से सप्तम स्थान में शुक्र हो और सप्तमेश पंचम स्थान में हो तो जातक को स्त्रीमरण का दुख सहन करना पड़ता है।
४-द्वितीयेश और सप्तमेश ६।८।१२वें भाव में हों तो स्त्रीमरण; छठे में मंगल, सप्तम में राहु और अष्टम में शनि हो तो भार्यामरण होता है।
५-शुक्र द्विस्वभाव राशि में हो और सप्तम में पापग्रह स्थित हों अथवा सप्तम पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की स्त्री का मरण होता है । सप्तमेश का द्वादश भावों में फल
सप्तमेश लग्न स्थान में हो तो जातक स्वस्त्री से प्रेम करनेवाला, सदाचारी, परस्त्री रति से घृणा करनेवाला, रूपवान्, स्त्री के वश में रहनेवाला, सुपुत्रवान् और धर्मभीरु; द्वितीय भाव में हो तो सुखरहित, दुखी, ससुराल से धन प्राप्त करनेवाला, स्त्री के सुख से रहित और रतिसुख के लिए सदा लालायित रहनेवाला; तृतीय भाव में हो तो पुत्र से प्रेम करनेवाला, रोगिणी भार्या का पति, दुखी, रोगी और कौटुम्बिक सुख से हीन; चौथे भाव में हो तो साधक, पिता से द्वेष करनेवाला, चंचल, समाजसेवी और सुखी; पाँचवें भाव में हो तो सौभाग्ययुक्त, पुत्रवान्, हठी, दुष्ट विचारवाला, माता की सेवा करनेवाला और दुष्ट प्रकृति का; छठे भाव में ३५४
भारतीय ज्योतिष
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